तुलसी रत्नावली | Tulsi Ratnawali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about लक्ष्मीचंद्र खुराना - Lakshmichandra Khurana
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कवितावली
चालकांड
दुर्मिल सवेया
अवधेस के द्वारे सफारे गई, सुत गोद के भूपति ले निकसे |
अवलोकि हों सोच-विमोचन को ठगि-सी रही, जे न ठगे घिक से ॥
तुलसी” मनरंजन रंजित-अंजन नेन सु-खंजन-जातक से।
सजनी ससि में समसील उसे नवनील ससेरुद से विकसे ॥ ॥
पग नूपुर ओ' पहुँची करकंजनि, मंजु वनी मनिमाल हिये।
नवनील कलेवर पीत भोगा मले, पुलक नृप गोद लिये ॥
अरविंद सो 'आनन, रुप-मरंद अनंदित लोचन-भूग पिये।
मन मो न वस्यो परस वालक जौ 'तुलसी' जग मे फल कोन जिये ॥२॥
फबहूँ ससि मॉगत आरि करें, कवहेँ प्रतिविवर निद्दारि ढरे।
फवहूँ करताल बजाइ के नाचत, मातु सबे मन मोद भरें ॥
फवहूँ रिसिआइ कहे हठि के, पुनि लेत सोई जेहि लागि अरें।
अवधेस के बालक चारि सदा, 'तुलसी'-मन-संदिर में विहरे ॥१॥
पद-फंजनि मसंजु बनी पनहीं, धनुद्दी-सर पंकन्न-पानि लिये।
लरिका-सैंग सेलत डोलत हैं, सरजू-तट, चोहट, हाट, ভি ॥
तुलसी, शरस वालक सो नदि नेद् कहा जप जोग समाधि किये ।
नर ते खर सुकर स्वान समान, कौ जग मे एल कौन জি |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...