प्रताप नाटक | Pratap Natak

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Pratap Natak by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दृश्य पहला अंक १४ तीसरा--झच्छा भाई अब हमे बातचीत बंद कर देनी चाहिए । संभव है कोई राजपुरुष अचानक यहाँ को आ निकले । हमे हर एक बात विचारपूर्वेक और शांत होकर करनी चाहिए । मनुष्य इस से धोखा नहीं खाता और समय पर अपने कार्य मे सफल होता है । पाँचवाँ-हॉँ भाई चलो अब हमे यहाँ से चुलना चाहिए ब्गौर शीघ्र ही जाकर महाराज सागररसिंह से मिलने की आज्ञा ग्रहण करनी चाहिए । अगर नहीं भी मिले तो इसमे उनकी कलई तो खुल जायगी । सब--थाझ्ो चले । सब का प्रस्थान परट-परिचतंन तीसरा दृश्य स्थान--चित्तौड़ सागरसिंह की सभा समय---तीसरा पहर सांगरसिह सिहासन पर विराजमान हैं । दाहिनी शोर मंत्री बेठे हुए हैं । दोनो आपस मे बातचीत कर रहे हैं । सागरसिंह--देखो मंत्री जी छाकबर से चित्तोड़ का रॉज्य देकर मुझ पर कितना अहसान किया है । दूसरी ओर श्रताप को तो देखो कि--मेरे सगे भाई जगमल को गद्दी से ही उतार दिया था तो कम से कम विपत्ति के समय .भाई के नाते उसकी सहायता




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