राजस्थानी लोक - कथाएं | Rajasthani Lok - Kathayen

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Rajasthani Lok - Kathayen by गोविन्द अग्रवाल - Govind Agarwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न ২] “जय-जगत' या जिओ और जीने दो का नारा सब को एक अनोखी सूझ « रूगता है लेकिन शाजस्थानी ब्रत-कथाओं की यह एक परंपरागत अनूर्ठ * देन है। द इनके अतिरिक्त कथाओं कौ एक चौथी किस्म वह्‌ कटी जा सकती .हैजो नव-युवक यार दोस्त अपने साथियों में बैठ कर कहते हैं। इत कथाओं । में अइ्लीलता का पुट होता है, अतः: ऐसा साहित्य लिपि-बद्ध नहीं किया जा सक्ता | यदि इन कथाभों से अदखीट अंश और शब्द निकाल दिये जाएँ तो ये कथाएँ भी बड़ी उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं । मैंने इन कथाओं में कुछ अहरलील कथाओं को इलीलू बनाकर पेश करने का प्रयत्न किया भी है। রি इतिहास तो राजाओं के जन्म-मरण की तारीखों आंदि का सूचीपत्र ” औत्र होता है। तत्कालीन जन-जीवन पर तो इन कथाओं से ही प्रकाश ~ पड़ता है ये लोक-कथाएं ही राजस्थान के तत्काटीन जन-जीवन की सच्ची तस्वीर खींचती हैं और इन कथाओं का राजस्थान के जन-जीवन पर भर- पूर असर रहा है । जहाँ तक हो सका है, मैंने कथाएँ संक्षिप्त रूप में ही लिखने की चेष्टा की हैं लेकिन साथ ही मेरा यह प्रयत्न भी रहा है (कि कथा का कोई आव- .श्यक अंग छूटने न पाये । कुछ ऐसे भी प्रसंग होते हैं जो थोड़े बहुत हेर फेर के साथ कई कथाओं में आते हैं। जो प्रसंग एक कथा में विस्तार से आ चुका हैं, वसा ही प्रसंग दूसरी कथा में आने पर मैंने उसे बहुत॑ संक्षिप्त कर दिया है। मैंने अपना कत्तेव्य ईमानदारी पूर्वक और निष्पक्ष भाव से निभाने की चेष्टा की है। इसमें कहाँ तक सफल हो सका हूँ, यह तो विद्वान और सहृदय पाठक ही बतला सकेंगे | जहाँ तक भाषा का सवाल है, मैंने सरलतम और बोलचाल की भाषा में कथाएं लिखने का प्रयत्न किया है, जिससे अधिका- धिक पाठक इन कथाओं को पढ़ सकें तथा जिन राज्यों में हिन्दी का अभी बहुत प्रचलन नहीं हुआ हैं और जहाँ सरल हिन्दी ही समझी और पढ़ी जाती है, वहाँ के निवासी भी इन कृथाओं में रुचि ले सकें | कथाओं के রা




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