नुकती ढाणान | Nuktidanan

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Nuktidanan by गोविन्द अग्रवाल - Govind Agarwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ माटी के ना हूँ स दीव वी झा खिमता है के वो पभ्रधार न झापव हेंटे दाब कर रां, पण मिनख के सिर पर तो अग्यान को अधारो हर वगत चद्यो ई ग्वे । 206 52021) 62100601500 812४5 500४-5 03114765 06८ 1 एर धल तक्रा ज 10012066 815/255 ग्राण्प्रा1$ ता 1080 ऽ 168 मिट्टी के नह से दीपक की यह क्षमता है कि वह प्रेयेरकौ प्रपने नीचे दवाकर रसता है। लेकिन झत्ान का भ्रधियारा तो हर समय मनुष्य के सिर पर चला ही रहता है ।




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