नियमसार प्रवचन भाग - 1 | Niyamasaar Pravachan Bhag - 1

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Niyamasaar Pravachan Bhag - 1 by श्री मत्सहजानन्द - Shri Matsahajanand

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री मत्सहजानन्द - Shri Matsahajanand

Add Infomation AboutShri Matsahajanand

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
गाथा ९ ११ खुदका खुदके भ्रयोजनमें बन्धन-- प्रयोजन यह है कि कोः सोचता हो कि किसी पर सेरा अधिकार है कोई मेरे कहने से चलता है--ऐसा सोचना असत्य हैं। सब अपने-अपने परिणसन्से अपना कार्य करते है। कोई झापसे कितना ही वायदा करे कि हमारा ठुम पर वड़ा अनुराग है। हम कभी भी तुमसे विलग नहीं हो सकते । यह उसके वर्तमान परिणामों की बोखलाहट है । ऐसा हो ही नहीं सकता कि कोई जीव किसी दूसरे जीवसे चेप्रयोजन ही चेंधघ जाय | चाहे वड़ा हो; चाहे छोटा हो। चाहे घर फा अमुख हो; चाहे देशका प्रमुख दोी। अत्येक जीव अपने-अपने भाषोके अनुसार अपना परिणमन करते हैं। ऐसा यह जगत है । यहा अपने को बहत सावधान रहना है । ` बुद्धिढोपकी विपदः-- मेया 1 सवसे बुरी विपदा है श्रपनेमे बुद्धि दोपका श्रा जाना | इससे वढकर ओर विपदा नहीं हैं | बुद्धिका दोप जिनके बढ़ जाता है उन्हें ही पागल कहते हैं ना, जो कभी सडक पर भी फिगते हो कोई बड़े घरका आदमी; जो प्रतिष्ठित घरका हो, वनी हो और दिमाग खराब हो जाय तो लोग उसको कितसली दयनीय दशासे देखते अरे चेचारा बड़ा दुःखी हैं। सबसे अधिक खी कौन? जिसकी बुद्धि- मलिन है । जिसकी चुड्धि पूर्ण स्वच्छ है, सावधान्न है। उह दरिद्र हो, चाहे इप्टोका वियोग हो) चाहे कोई दूसरा सताता हो तब भी वह गरीब नहीं हैं क्योकि चुद्धिवान ऐ। विवेक धन उसके वरावर वना हृश्रा है । जिसकी बुद्धि विगड़ जाती दै, विवेक काम नदीं करता है वह चाहे कितने वेभवके बीच हो, वह गरीब ही है व्योकि उसे वर्तमानसे शाति नहीं है ओर গুললা ही नहीं बह भावी कालका भी श्रपना कुछ निवारण नहीं कर सकता । उपदेशका ध्येय शिवम्गगं च शिवमार्मफल-- जिनगासनमे इन दो वातोका वणन है- मागं श्नौर मसार्गफल । सार्ग तो सोक्षका उपाय है। किस मोक्ष दिलाना है ? अपने आत्माको । जिसे मोक्ष दिलाना हैं इसका स्वरूप तो जानो, उसकी श्रद्धा हो ओर जिसे छूटना है. उस रूपमे इसका अंतरद्ध में आचरण हो तो मोक्षका सार्य वसता है ओर उसका फल है निर्वाणकी प्राप्ति । मोक्षकी तो लोग बडी प्रार्थना करते हैं। पूजामे, पाठमे, विनतीमें वोल जाते हैं कि हमें छुटकारा मिले | काहे से छुटकारा मिल्ले ? कर्मसे छुटकारा मिले, देके यधनसे छुटकारा मिले । दुखकछारेके निए वडी प्राना करते रै! भौर क्‍यों जी यदि थोडे पेसोसे छुटकारा हो जाय तो उससे खेद क्यो मानते हो? विनतीमे तो कहते हो कि छुटकारा मिले, पर जरासा पैसोसे छुटकारा हो जाय तो उसमे खेद काटेका मानते से १ मानते 9 ०४ -3




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now