ज्ञानसार ग्रंथावली | Gyansaar Granthawali

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अगरचन्द्र नाहटा - Agarchandra Nahta

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भंवरलाल नाहटा - Bhanwar Lal Nahta

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राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[-.£ .1 ~ ही पडी रहीं! . इखी वीच श्रीमदू. का साहित्ये प्रकाशना्थै : कलकत्ते छाया गया प्रर तन तक्‌ कारू परिपाक नहीं हुआ था 1 , - हम उसे गद्दी में छोड़कर बीकानेर चले गये और पोछे से मूषक ` | ९ | मे उसे अपना भक्ष्य बनाना प्रारंभ कर दिया | - हमने वापस शी. ` कर देखा तो उसके बहुत से पठ तो कातर कातर हो गये थ, कु - रचनाएँ किनारे से सक्षित अवस्था में मिलीं। हमें. अपनी ` „ अखावधानी ओर गणेश्चवाहन की करतूत पर अत्यन्त खेद हुआ। ` इत वटना को मी छगभग १७ क्षं बीत गये; प्रकाशनकी व्यवस्था . / न हो सकी.।.-पर अपने ऐतिहासिक जन काव्य संग्रह! मे श्रीमदू . के जीवन सम्वन्धी) ददः श्रीमद्‌ के दाथ से दिखे हए एक स्तवन क. টা और आप के चित्र का व्छाक बनवोकर प्रकाशित कर दिया था। । अपने साहित्यिक शध के श्रारयक्रालमे विचर समयदुन्द्र ~ संबन्धी कत्तिपय वादये के उन्तर प्राप्त करने के शिलुशिले में जन ` सोहिय महारथी `स्वगीय . मोहनलाल. दरीचन्द देसाई. से ए 5 हसारा सम्बन्ध स्थापित हुआ और बहक्रमश: दृढतर होता-गया। हमारे द्वारा वीकानेर के ज्ञानमंडारों की विपुल खादित्य जोर . . हमारे रूपह की अनेक महत्त्वपृण कृतियों की सूचना पाकर গন . »देखाई बीकानेर पधारने के लिए उत्कंठित हो रठे | रबी चाटाघाट पश्चात्‌ छमंसग १० उप पृत्र उनका बीकानेर पधारना हुआ तो . .. उन्दोने अपने प्राप श्रीमद्‌ ज्ञानसारजी के पदोकी एक सुन्दर प्रति জ্বী सूचना दी तो हसने अपने नंकछ किये हुए पद संग्रहकी प्रेसकापी `` - हल्हें दिखढायी | आप श्रीमद्के पदोंकी मामिकतासे पहले से ही :, प्रभावित थे ओर सम्भवतः प्राप्त प्रति की प्रेसकापी भी वे कर এ. জু ঘ अतः हमारी प्रेसकापी भी वे जाते समय साथ छे गये




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