समयसार प्रवचन भाग - 14 | Samayasaar Pravachan Bhag - 14

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Samayasaar Pravachan Bhag - 14 by श्री मत्सहजानन्द - Shri Matsahajanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समयतार प्रवचन चतुद शतम भाग ५१ कृतिके प्रसंग में बालक का दृष्टान्त--- एक वालक है इस बालक को मा ने पैदा किया क्या ? नहीं । बापने पैदा किया क्या ? नहीं | ग्रौर दोनो ने किया क्या ? नहीं । तो क्‍या दोनो ने नहीं क्या ? तो श्रौर बात है क्‍या ? दडी कठिन बात है । माँ ने केवल पैदा नहीं লিমা | জলজ श्रा गया । बायने केवल पैदा नहीं किया । समझ में आ गया । प्रच्छा यहभी सम्भफ मेश्रा गया कि चूकि पुत्र पृथर्रव्य है सो मा बाप दोनो ने मिलकर उस पृथक भृत अन्य द्रव्य को उत्पन्नं तहं किया । श्रच्छा यह्‌ भी ठीक जच रहा है। और दोनो ते नहीं किया ऐसा भी नहीं है क्यो कि आखिर वह एक कार्य ही तो है । तब फिर कया है ? तो यह विवरण वहुत बडे लम्बे चौडे वर्णन के साथ बताया जायगा । इप्ती तरह रागादिक को जीवने नहीं किया क्यो कि केवल जीव करे तौ जीव का स्वभाव वन जायगा। श्रौर फिर कभी छूट न रुकेगा । कर्मो ने भी नहीं किया । क्यो कि कर्म पृथक भ्रृत्त वस्तु हैं, वे जीव का परिणमन नहीं करते और जीव, कम दोनो ने मिलकर नहीं किया, क्यो करि यदि इ भिथ्यात्व रागादिक भावो को जीव कमं दोनो मिलकर करते है, उसका फल दोनो को भोगना चाहिए | केवल जीव ही क्यो भोगे। श्रौर दोनो ने नहीं किया यह्‌ भी बात नहीं है क्यो कि वह कायं है स्वत नहीं किया गया है, तब फिर वात क्या है ्रन्तिम ? विभाव के कत त्व के सम्बन्ध में निशय-- भैया 1 इसका निर्णय यह है कि जीवका सिथ्यात्व जीवका कर्म है और वह्‌ जीव से अ्न्वयरूप है । जोवमे भ्रनुगत जीव मे ही उद्गत होता है। पुद्गल मे चितूस्वरूप नहीं है । इसलिए वहा रागादिक उद्गत नहं होते 1 तव यह सिद्ध हुआ कि ग्रजलनं श्रवस्था मे पुद्गल का निमित्त सत्र पाकर जीव रगादिकका कतं होता है । जो लोग जीवके रागादिक भावो को करने वते कमं ही समभे है, आत्मा के कतृ त्व का घात करते हैं उन्होंने इस आगम वाक्य का कुछ भी ख्याल नहीं किया कि कथज्चित्‌ यह आत्मा ही रागादिकका कर्ता है। उन्होने झागम के विरुद्ध निरूपण किया ।




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