भारतीय संस्कृति और साहित्य में भगवान पार्श्वनाथ | Bhartiya Sanskriti Aur Sahitya Mai Bhagavan Pashrvnath

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Bhagavan Pashrvnath  by बाबू कामता प्रसाद जैन - Babu Kmata Prasad Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है। यही कारण है कि सम्पूर्ण देश मे जहा प्राचीन ओर अर्वाचीन तीर्थकर प्रतिमाओं मे सर्वाधिक प्रतिमायें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की ही प्रतिष्ठित है, वहीं सर्वाधिक मदिर भी इन्हीं के मूल नायकत्व के रूप मे समर्पित है । अर्धमागधी प्राकृति साहित्य मे 'पुरुसादाणीय' अर्थात्‌ लोकनायक श्रेष्ठ पुरुष जैसे उनके अति लोकप्रिय व्यक्तित्व के लिए प्रयुक्त अनेक सम्मानपूर्ण विशेषणों का उल्लेख मिलता है । वैदिक और बौद्ध धर्मों तथा अहिंसा एवं आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति पर इनके चिन्तन और प्रभाव की अमिट गहरी छाप आज भी विद्यमान है । वैदिक, जैन और बौद्ध साहित्य में उल्लिखित, ब्रात्य, पणि और नाग आदि जातियाँ स्पष्टत: पार्श्वनाथ की अनुयायी थीं । भारत के पूर्वी क्षेत्रों विशेषकर बंगाल, बिहार, उड़ीसा आदि अनेक प्रान्तों के आदिवासी-बहुल क्षेत्रों में लाखों की संख्या में बसने वाली सराक, सद्गोप, रगिया आदि जातियों का सीधा ओर गहरा सम्बन्ध तीर्थकर पारश्वनाथ की परम्परा से है । इन लोगो के दैनिक जीवन व्यवहार की क्रियाओं और संस्कारों पर तीर्थकर पाश्वनाथ ओर उनके चिन्तन की गहरी छाप आज भी देखी जा सकती है । सम्पूर्णं सराक जाति तथा अनेक जैनेतर जातिर्यौ अपने कुलदेव तथा इष्टदेव के रूप मे आज तक इन्हीं पाश्परभु की मुख्यतः पूजा भक्ति करती है | ईसा पूर्वं २-३ सदी के जैनधर्मानुयायी सुप्रसिद्ध कलिंग नरेश महाराजा खारबेल भी इन्हीं के प्रमुख अनुयायी थे । अंग, बग, कलिंग, कुरू, कौशल, काशी, अवन्ती, पुण्ड, मालव, पाचाल, मगध, विदर्भ, भद्र, दशार्ण, सौराष्, कर्नाटक, कोकण, मेवाड़, लाट, काश्मीर, कच्छ, वत्स, पटुव ओर आमीर आदि तत्कालीन अनेक क्षेत्रो, रट ओर देशो का उदेव आगो मे मिलता है, भगवान पार्शनाथ ७ १४ ७




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