काल - चक्र | Kal Chakra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19.53 MB
कुल पष्ठ :
472
श्रेणी :
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चुन्नीलाल मडिया - Chunilal Madia
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श्यामू संन्यासी - Shyamu Sainasi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दे लगाम थमाने का दिखावा किया और गाडी पुनः श्रमरगढ़ स्टेशन के रास्ते तेज़ी से भाग चली । धूल भरे रास्ते पर घोड़े की टापों की घंसती हुई आवाज़ और उसके गले मे बँघे हुए घुघरुओं की तेज़॒भनकार को सुनकर रास्ते के दोनो ओर के खेतों में काम करने वाले किसान थोड़ी देर के लिए श्रपना काम छोड़कर खेतों की मेढ़ों पर आ खड़े होते श्रौर उस राजसी वाहन को देख-देख क्षण-भर के लिए भानन्द श्राश्चयें श्रौर गवें का अनुभव करने लगते थे । काठ्यिवाड़ की घरती पर अभी तेल की गाड़ी अर्थात् मोटर का आगमन नहीं हुआ था। श्रोतमचन्द सेठ की यह फिटन गाड़ी थी जिसे स्थानीय लोग फेटीन कहते थे अभी तक बडी-बड़ी रियासतों श्रौर गिने-चुने धनिकों के यही पहुँच पाई थी । बेलगाड़ी की सभ्यता में फिटन घोड़ागाड़ी या चार पहियेवाली बग्घी भी एक झ्रजूबा ही थी । हि इसीलिए इस भज्बे को देखने के लिए खेतों पर छाक-कलेवा ले किसान औरतें सिर पर रखी मटकी-छबड़ी को थामे खड़ी रह जाती थीं और जगल से ईंधन बटोर कर लाने बाली व्रृद्धाएँ सिर का बोक उतार हथेली से कपाल पर छाया कर बड़े कुतूहल से चार पहिये वाली इस नये ढंग की घोड़ागाड़ी का निरीक्षण करतीं और तब भापस में बतियाने लगतीं यह तो वाघणिया बाले श्रोतमा सेठ की गाड़ी है और वो भीतर में कोण बेठा था ? वो तो श्रोतमा सेठ का छोटा भाई नरोत्तम है । छोटा भाई ? वो ही जो दुकान में मसनद लगा के बेठे है ? छोटा बड़ा हो गयां है । बरस-दिन जाते क्या देर लगे है बहना बाप-भी तो बेचारे को इत्ता मुन्ना-सा छोड़ के सिघार गये थे । श्रोतमा सेठ ने ही छोटे भाई को पाल-पोस के बड़ा किया । भाई तो फिर भी सगा माँ का जना था परन्तु भौजाई तो लाख कहो परायी जनी ही कहीं जावे हैं। मगर
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