प्राच्यदर्शनसमीक्षा | Prachyadarshan Samiksha

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Prachyadarshan Samiksha by साधु शान्तिनाथ - Sadhu Shantinath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[र] दो सकता है, जब कि सभी विद्वानों के तत्व विषयक निदशेनों को भली प्रकार हृदयज्ञम करके उनमें से युक्तिसक्षत और यथार्थ सिद्धान्त का निणेय किया जाय । अतणव मैंने विभिन्न सम्प्रदायों के विभिन्न दृश्कोण, विभिन्न विचारपद्धति और विभिन्न सिद्धान्तों से उत्तम रीति से परिचित होने के लिप उनके प्रौढ प्रक्रिया ग्रन्थों का (अनेक मुद्रित और लगभग ४०० अमुद्वित ग्रन्थों का) अध्ययन किया । इस तुलनात्मक अध्ययन (00101088059 ৪6০5) জী ঈনি অহ ঘাযা कि, प्रत्येक सम्प्रदाय के प्रकाण्डपण्डित रचित प्रखर प्रकरण प्रन्थ मं पर पक्ष को खण्डन करने में अतिशय कुशलता दिखाई जाती है, पर अपने सिद्धान्त की प्रतिष्ठा के समय उनके विचार शिथिल दोते ह । अनेक स्यो में केवल अपने साम्प्रदायिक गुरु या साम्प्रदायिक शास्त्र का कथन ही अन्तिम सर्वेमान्‍्य निणेय समझा जाता है। अतएव वास्तव में होता यद है कि, प्रत्येक वादी अन्य सब सिद्धान्तो का खण्डन करता है (यदि प्सान करे तो अपने मत करी प्रतिष्ठा नदीं होगी) ओर अन्य सब के द्वारा वद स्वयं भी खण्डित दोता है) (यहां पर ऐसे समझना सादिए कि, दृश सिद्धान्त-वादी है, वे सभी परस्पर विरुद्ध दोने से प्रत्येक वादी नौ सिद्धान्तो का खण्डन करता है ओरनौ के द्वारा खण्डित भी होता है; किन्तु पक ग्यारहवें तटस्थ व्यक्ति के लिप वे दशों सिद्धान्त खण्डित हँ) । परन्तु यदि दम इन परस्पर प्रतिदन्द्धी सिद्धान्तो में से प्रत्येक की समालोचना दृणि से परीक्षा करें, तो उनकी प्रतिपादन-दैखी म प्रतिदन्द्ी दारा प्रदर्दित दोषों के अतिरिक्त अन्य भी अनेक दोष प्राप्त हो सकते हैं (जैसा ।क इस ग्रन्थ में अद्वैत दान्त मत खण्डन के प्रसह्न में प्रदर्शित किया $) । यतपव साम्प्रदायिकः पक्षपात तथा संकीणे मनोभाव का परित्याग करके यदि इमलोग स्वतन्त्र निरीक्षक बनकर प्रत्येक मत की-सरलता ओर गम्भीरता पूवेक-परीक्षा करें, तो उनमें से कोई पक भी रेखा दानिक सिद्धान्त नदीं पाते, जो नानाप्रकार के यौक्तिक दोषो से निसुक्त हो 1 (विभिन्न दाशेनिक मतों में मोलिक भेव होने से तथा प्रत्येक मत के दूषित होने से, उनका समन्वय . भी सम्मब नहीं है) ।




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