सम्यक्त्वपराक्रम भाग - 4 | Samyaktvaparakram Bhag - 4

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Samyaktvaparakram Bhag - 4 by चम्पालाल बांठिया - Champalal Banthiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) छत्तीयवां बोल | व्याख्यान कषाय-त्याग के दिषय में विचार करने से पहले यह विचारणीय है कि आहारप्रत्याख्यान के बाद कषायप्रत्याख्यान के विषय में प्रश्न क्यों किया गया है? आद्दार्पत्याख्यान के साथ कषायप्रत्याख्यान का क्या सम्बन्ध हे ? इस प्रश्न के उत्तर में शाख- कार कदते हैं कि संभोगप्रत्याख्यान, उपधिप्रत्या्यान और आहार- प्रत्याख्यान तमी सफक्ष होते है, जब कषाय का त्याग कर दिया जाय । कषाय का व्याग कयि विना अपर के सभी त्याग सफल सिद्ध नहीं होते | संभोग, उपधि और आहार आदि का त्याग भी कषाय का त्याग करने के उद्देश्य से ही किया जाता है । संभोग में रहने से किसी को कुछ कहने और सुनने का प्रसंग आ जाता है । इससे बचने के लिए संभोग का त्याग किया जाता है । उपधि रखने से सदेव यह भय बना रदता है कि कोई उसे लेन जाय, इस भय से मुक्त होने के लिए डपधित्याग किया जाता है। आद्वार के लिए अनेक प्रकार के ऋर करत भी करने पडते हैं और अनेक प्रकार की उपाधियाँ भी बद्दोरनी पड़ती हैं। इनसे छुटकारा पाने के लिए आद्वार का त्याग क्रिया जाता है। परन्तु जब तक कषाय का त्याग नहीं क्रिया जाता तब्र तक यह सब त्याग निष्फल है अथवा अल्प फलदायी दी सिद्ध होता है । कषाय का त्याग करन पर भी अगर संभोग, उपधि और आहार आदि का त्याग सफत्न होता तो कुटम्बक्लेश के कारण चर का त्याग कर देने चाले लोग भी संभोग के त्यागी कहलाते। इसी प्रकार बहुत से लोगों के पास किसी प्रकार की डप्धि नहीं होती तो जया वे उपधि के त्यागी साने जा सकते हें? क्या उन्हें




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