जवाहिर - किरणावली | Jawahir - Kiranawali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
280
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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चास्ताविक शांति ] श्री जवाहिर किरपयारली
कर वह बहुत प्रसन्न हुआ । प्रमत्ता करने लगा क्रि यह कैसा सुन्दर देश है ।
यहां जमीन पर पड़ी हुई बेल में ही ऐसे सुन्दर फल लगते ह। मेरे देश में ता
ऊँचे वृक्ष पर ही फल छांते हैं | उत्त वक्त उत्ते मुख लग रही थी अ्रत। एक फल तोइकर
खाया | किन्तु फल उसे कडुआ लगा | वह थू थ करता हुआ सोचने लगा कि इतने सुदर
फल में यह कडुआपन कहाँ से आ गया ? यह सोचकर कि देख़ फल कडुआ है पर पत्ते
कैसे है, उसने पत्त चखे | पत्ते भी कडुए निकले | फिर उसने फूल चखा तो वह मी
कड्डुआ माल्म हुआ | अ्रन्त में उसने उस वे का मूल (जड़) चखा | ब्डे दुख के साथ
उसने प्रनुभव किया कि उप्त बेछ का मूल भी कडुआ ही था | उप्त व्कक्ति ने निरय
किया कि जिसका मूल ही कडुआ होगा उसके सत्र अश कडडए ही होंगे ।
सायश यह है कि श्राप छोग अपने पुत्र को तो शान्तिदायफक पसन्द करते ह
किन्तु खुद को भी तपासिये कि आप स्वय केसे हैं * कोई अच्छे कपड़े पहन कर अच्छा
बनना चद्दे तो इससे उसकी अच्छा बनने की मुराद पूरी नहीं हो जाती | कपड़ों के परि-
वक्षन करने ले या सुन्दर साम सजाने से श्रात्मा श्रच्छा नहीं बन जाता | इससे तो शरीर
प्च्छा लग सकता है | यादे खुद के श्ात्मा में दूसरें को शान्ति पहुचाने का गुण द्वोगा
तभी মাঘ अ्रच्छा छगेगा और तभी मतान भी जान्तिदायिनी हो सकती है ।
महाराजा विश्वप्तेन सत्र को शाति पहुंचाने के इच्छुक रहते थे इसी से उनकी रानी
'प्रचिरा के गर्भ में भगवान् शान्तिनाथ ने जन्म घारण क्रिया | जिश्त समय भगवान् भातिनाव
गभ में थे उ समय मद्धराना विश्वदन के राज्य में महामारी का मयकर प्रकोप हुआ |
प्रना महामारी को शिकार हाने छगी । यह देग्व सुन कर महाराजा बहुत चिन्तित हुए চা
विचार झरने छो कि जिम प्रजा की रक्षा और बूाद्धि दे लिए मेने इतने कष्ट टठाये हे बह किस
प्रकार करार, कवलित টী रही है । मेरी कितनी ऋमनोरी है कि जो मेरे साम्ंत मस्ती ह£
प्रजा का मे रक्षण नही कर पाता है | इन प्रक्तार महामारी क्षा प्रज्ञोप होना कोर प्रजा छा
पतान होना केदठ प्रजादे पापों का ही परिगाम नहीं हैं किन्तु मेरे पार्पो झा थी पर्रिणम है
जे कुछ दो, घुके पाप पाप दरवे ही ने चेंठे सहन! चद्विण किर
न
जिससे प्रजा की रक्षा हो घोर उस হাটিন সাল টা! ये
च
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