महासागर की मछली | Mahasagar Ki Machhali

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Mahasagar Ki Machhali by मदन लाल - Madanlal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चालू है । रात्रि को विश्राम कहाँ उचित रहेगा ? रास्ता पथरीला है प्रकाश व रोशनी की भी व्यवस्था नहीं हैं। पहाडी रास्ता তপ্ত खाबड । यो सोचते-सोचते ही हम तीनो बिरला धर्मशाला के मुगथ द्वार तक पहुँच गए। पूरे रास्ते न तो उन युवकों ने मुझ से कोई परिचय पूछा एवं नही मेने उन दोना युवकों का परिचय जानने की ग्रावश्यकता समझी | ज्यो ही में धर्मशाला के अन्दर पहुँचा, चरसात श्रचानक तेज हो गईं। काले बादलों ने पूरे पहाड को ढक लिया । देखते ही देखते अन्यकार का घटाटोप आ्रासमान पर छा गया ! धमशाला के वरावर एक कोने में कृझआ बना हुम्ना है। वही बाबा बेजनाथ मुझे बेठे हुए दिखाई दिये। तेज चरसात होने से वाबा धमशाला के बरामदे की त्तरफ बढ आये। ज्यों ही बाबा मेरे नजदीक पहुँचे पता नही क्यो श्रचानक मुभ उरा व्यक्ति के प्रति स्वाभाविक श्रद्धा उत्पन्त हो आई। मेने लपक कर वाबा का चरण स्पर्श किया । बाबा ग्राहिस्ता-प्राहिसता धमशाला की प्रथम मन्जिल पर बने बरामदे की तरफ बढ़ चले। मैं भी मन्त्रवेत्‌ बाबा के पीछे- पीछे चल पडा | इस धमझाला का ऊपर का रास्ता भी बडा विचित्र है। नया आदमी इसे काफी तलाश करने पर ही दू“ढने मे सफत हो सकता है। धर्मशाला के एकदम पीछे, विलकुल एक कोने मे वहाँ भी दूर से श्रापकों सीढियाँ नजर नही आयेगी । जब आप एकदम नजदीक पहुँचेंगे तो मकान में से सीढियाँ ऊपर जाती दिवाई पडेगी, किन्तु म॑ं बाबा के पीछे-पीछे चल रहा था, इसलिए कोई श्रसुविधा नही हुईं। ऊपर बरामदे में पहुँचकर নালা एक बडे तरत पर बेठ गये। तरत पर एक पुरानी मृगछाल थी। वही बाबा का आसन था। वहाँ पहुँचकर मैंने यह महसूस किया कि बावा अकेले ही नही है, उनके साथ उनका शिष्य परिवार थी है। बाबा के आसन पर बैठते ही एक शिष्य ने बाबा को सूखा तौलिया पकडाया, दूसरे ने गाँजा की भरी हुई चितम बाप्रा की तरफ बढाई। चिलम की दो फ्‌ क छेते ही वावा की महासागर की मछली / 11




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