कबीरदास | Kabir Das

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kabir Das by मदन लाल - Madanlal

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मदन लाल - Madanlal

Add Infomation AboutMadanlal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भक्तिकाल की प्रेरक परिस्थितियाँ_ 17 जाता था । जनता की आधिक स्थिति दयनीय थी, दूसरी ओर शासक वर्ग के पास धन- दोलत की भरमार थी। किसानों से जबरन लगभान वसूल किया जाता था, जिसके ना दिये जाने पर उनको स्त्री-बच्चों समेत गुलाम बना लिया जाता था, तथा धर्म परिवर्तन को मजबूर किया जाता था । डब्लू ०एच० मोर के शब्दों में ---““उच्च अधिका रियों कौ अकबर के शासन काल मे जितना वेतत मिलता था उतना आज भी भारत मे और विश्व में कही नहीं दिया जाता। लेकिन इसके विपरीत किसी विशेष योग्यता से रहित नौकर को डेढ़ रुपये माहवार मिलता था और पश्चिमी तट के क्षेत्र मे शायद दो रुपये ।” बार-बार अकाल पड़ते से जनता की आथिक स्थिति और भी दयनीय हो चली थी और धामिक अन्धचिश्वास तथा मसहिष्णुता बढ़ने लगी थी । उपयुक्त आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि भवितकाल में ज्ञानपरक, प्रेमपरक ओर भव्तिपरक साहित्य को उत्प्रेरित करने वाली उस समय की (तत्कालीन)राजनैतिक, धामिक और सामाजिक परिस्थितियाँ ही थी । जिनके कारण तत्कालीन समाज परतल्त्रता, धार्मिक विडम्बना, सामाजिक अत्याचार तथा नैतिक पतन के भर्ते में गिर चुका था। भारतीय समाज की ऐसी दुर्देशा देखकर इस युग के ज्ञानियों, सन्‍्तों और भक्तों का हृदय दयाद्व हो उठा और निराशा के इन घुमड़ते बादलों मे भवित आन्दोलन बिजली की तरह कौंध गया, जिसके माध्यम से धर्म और संस्कृति की समस्त सुजनात्मक शक्ति का विकास व प्रसार हुआ और नव चेतना का स्फुरण और स्पन्दन हो गया। इन भक्त कवियों ने श्रस्त जनता को आत्म प्रेरणा देकर साहस के साथ खड़े होने का संदेश दिया | ज्ञान और भक्ति की उत्कट भावना के साथ ही साथ सरस्वती का अमूल्य वेभव काव्य प्रतिभा भी इन कवियों को भगवत्‌ कृपा से प्राप्त थी। अतः दोनों सुयोगो के मिल जाने के कारण इन कवियों की अमर वाणी ने निराशा के गत में पड़ी हुई भसहाय और अशकक्‍त हिन्दू जनता के कानों में ज्ञान, कम, योग, प्रेम और भक्त का ऐसा अमोघ मंत्र फूंका जिससे अध.पतन की ओर जाती हुई हिन्दू जाति फिर से सम्भल गई। उम्रके हृदय में मुसलुमानों का भय समाप्त हो गया । गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू जनता को भयमुकत करते हुए लिखा है-- जब जब होइ धर्म की हानी, बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी। तब तब धरि प्रभु मनतुज सरीरा, हर्रह देव-रिपि मुनिकर पीरा।।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now