श्रीमद् राजचन्द्र जीवन - साधना | Shreemad Rajchandra Jeevan Sadhna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“पुनर्जन्स है, जरूर है। इसके लिखे “मैं” अनुभवसे हाँ कहनेमे अचल हूँ।” यह वाक्य पूर्वभवके किसी योगका स्मरण होते समयका सिद्ध हुआ लिखा है। जिसने पुनर्जन्मादिभाव किये है, अस पदार्थंको किसी प्रकारसे जानकर वह वाक्य लिखा गया है।' श्रीमद्के इस अनुभवको किस प्रकारसे समझना ? ढाचेमे यह कैसे बैठे ” अथवा श्धन्य रे दिवस आ अहो, जागी रे शान्ति अपूव रे, दस वषं रे धारा भुरसी, मय्यो मृदय कर्मनो गवं रे। ओगणीसेने एकत्रीसे, आव्यो अपूवं अनुसार रे, मौगणीसेने वेताक्सि, अद्भूत र्वराग्य धार रे, ओगणीसेने सुड़तालिसि, समकित शुद्ध प्रकाद्यु रे, श्रुत अनुभव वधती दशा, निज स्वरूप अवभास्यु रे। 9 भै मै आवी अपूव वृत्ति अहो, थणे अप्रमत्त योग रे, केवल लगभग भूमिका, स्पर्शनि देह वियोग ই। इसमे ‹ दश वषं रे धारा उलसी ' अर्थात्‌ दस व्प॑मे धारा प्रगट हुईं इसका क्‍या अर्थ और यह कौन-सी मनोवस्तुको सूचित करती है? *अपूर्व अनुसार --अआपूर्व अनुसार आया अर्थात्‌ क्या आया? हम लोग वैराग्यकों तो समझते है, परन्तु अद्भुत्तका क्या अर्थ ? -... शुद्ध सम्यकक्‍त्व प्रकाशित हुआ अर्थात्‌ क्‍या हुआ? जड और चेतन ये दोनो भिन्न रहै एसी श्रद्धा या मान्यता सम्यक्त्व या समकित हैं, परन्तु प्रकाशित हुआ, इससे विचार सिवाय दूसरा कया हुआ? ° निजस्वरूप अवभास्यु” इससे मनृष्यको “अह'का वेदन होता है, इसके सिवाय दूसरा क्या अवभासित हुआ? भूमिका 'के स्पशसे किसका स्पर्श करता है? १ श्रीमद्‌ राजचन्द्र स २००७की आवृत्ति, पत्र ४२४ २ शेजन पत्र ९६०-१ (३२) मनोविज्ञानके *क्रेबल জ্যাম ११




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