उत्तर प्रदेश में स्नातक स्तरीय शिक्षक प्रशिक्षण और शिक्षा का विकास और समस्याओं का आलोचनात्मक अध्ययन | Uttar Pradesh Men Stanatak Stariy Shikshak Prashikshan Aur Shiksha Ka Vikas Aur Samasyaon Ka Aalochanatmak Adhyayan

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Book Image : उत्तर प्रदेश में स्नातक स्तरीय शिक्षक प्रशिक्षण और शिक्षा का विकास और समस्याओं का आलोचनात्मक अध्ययन  - Uttar Pradesh Men Stanatak Stariy Shikshak Prashikshan Aur Shiksha Ka Vikas Aur Samasyaon Ka Aalochanatmak Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की कुल जनसंख्या जो 1961 में 44 करोड़ थी, 1971 में 54.8 करोड़ तथा 1981 में 68. 3 करोड़ की सीमा को लांघ चुकी है तथा 1991 में 85 ६ और 2001 में 100 करोड़ से ऊपर की सीमा पार कर चुकी है। इस बढ़ती हुई जनसंख्या का कुप्रभाव शिक्षा पर किस प्रकार पड़ा है, यह स्पष्ट दिखाई देता हे | स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय बने संबिधान में वर्णित धारा 45 जिसके अनुसार 14 वर्ष तक के सभी भारतीय बच्चों के लिए सार्वभौमिक शिक्षा प्रावधान रखा गया था, उसके लक्ष्य की ओर हम बढ़ते रहे है, 1960 से 1970 फिर 1988 और अब लक्ष्य-पूर्ति का वर्ष 2005 बना दिया गया है। वस्तुतः संख्या के दबाब के कारण इस लक्ष्य को प्राप्त करना हमारे लिये अभी भी समस्या एक बनी हुईं है। जनसंख्या बढाने से शिक्षा संस्थाओं में शिक्षकों एवं संसाधनों की माँग अधिक बढ़ गई है। वस्तुतः बढ़ती हुई जनसंख्या के अनुरूप शिक्षकों की संख्या एवं संसाधनों में बुद्धि नहीं की जा सकी है। जिसके फलस्वरूप शिक्षा के स्तर में गिरावट आ जाना स्वाभाविक है। इस दिशा में अधिकांश शिक्षाविदों का मत है कि शिक्षा में संख्यात्मक विकास के कारण, गुणात्मक विकास अवरूद्ध नहीं होना चाहिए । शिक्षा अपने में जटिल प्रक्रिया है और शिक्षक शिक्षा उससे भी जटिल प्रक्रिया मानी जानी चाहिए । स्टोन्स तथा मारिस' ने अपनी एक पुस्तक में स्पष्ट किया है कि दुनियां में मनुष्य का सीखना अत्यधिक जटिल वस्तुओं में से एक है, और मनुष्य को सिखलाना (जिसे हम प्रायः प्रशिक्षण मानते हे |) उसी पैमाने पर॒ असंख्य समस्याओं को समाहित किए हए हँ अतः यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि वह व्यक्ति को जो शिक्षक शिक्षा में लगे हुए हैं उनका तथा उनके द्वारा प्रयुक्त विधियों की तीखी. अलोचना देखने को मिले । शिक्षक शिक्षाकी जटिलताए सामान्यतः दो तत्वों पर आधारित है । प्रथम वह तत्व जिसपर शिक्षक का नियंत्रण रहता है, जिन मे वह परिवर्तन ला सकता है । जैसे ~ प्रश्न पूषठने की कला, विषय वस्तु का सीमांकन करना, `




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