समयसार | Samayasaar

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Samayasaar by आनन्दसागर जी महाराज - Aanandasagar Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ हरी लल षीली नही हलकी भारी नाहि । अजर अमर परमातमा रनर पशु के माहि ॥ रोके से सकती नही सब गुण चेतनमा हि। ठोक से ठुकती नहीं यह गुण चेतन -थाहि॥ गज घोड़ा गाड़ी नहीं गाय मभेंपनहिऊँट | चीता रीछ् चकोर नहि आतम शिब पद कूट ॥ नहिं यक्षणी यक्ष है व्येतर भूत पिशाच । जगदंवा दुर्गां नहीं किन्नर किंकर काच ॥ सूयं चन्द्र॒ नागेन्द्र नहि नहि धरणेन्द्र पुरे । ज्ञान चेतना राम है एेसे कहत जिनेन्द्र ॥ चेतन वन्त॒ शरीर म रहे सदा श्रमलान। नरख परख निज त्रापको मुक्त महल सो पान ॥ श्रव निज म॑ निज ज्ञानले नियत करो परिणाम | शिव मारग समर करो तव घुघरं सब काम ॥ रागादिवरणा दिसव है पुद्गल कै मेल | वसुगुण तेरी सुरत है केवल भलके खेल ॥ जगी श्रनादि कौलिमा मोह मेल की बेल । भागी मोह की कालिमा निज युए परसो रेल ॥ ज्षेय ज्ञान ज्ञाता सवे तीनो भेद मिटाय । किरया कतौकर्मका एक दरब दिखलाय ॥




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