जैन पूंजांजलि | Jain Pujanajali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
378
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जैन पूजांजलि
राग द्धेघ शुभ अशुभ भाव से होते पुण्य पाप के बध |
साम्य भाव पीयाषामृत पीने वाला ही है निर्बन्ध ||
श्री
जैन पूजान्जलि
एवं
चतुर्विशति तीर्थकर विधान
ॐ नम सिद्धेभ्य
अभिषेक पाठ
मै परम पूज्य जिनेन्द्र प्रभु को भाव से वन्दन करं ।
मन वचन काय, त्रियोग पूर्वक शीश चरणों में धरं ॥१॥
सर्वज्ञ केवलज्ञानधारी की सुछवि उर मे धरं ।
निर्ग्रन्थ पावन वीतराग महान की जय उच्चर ॥२॥
उज्जवल दिगम्बर वेश दर्शन कर हृदय आनन्द भरू ।
अति विनय पूर्वं नमन करके सफल यह नरभव करू ॥३॥
मै शुद्ध जल के कलश प्रभु के पूज्य मस्तक पर करं ।
जल धार देकर हर्ष से अभिषेक प्रभु जी का करूँ ॥४॥
मै न्हवन प्रभु का भाव से कर सकल भवपातक हरूँ।
प्रभु चरणकमल पखारकर सम्यक्त्व की सम्पत्ति वरू ॥५॥
जिनेन्द्र - अभिषेक -स्तुति
मेने प्रभु के चरण पखारे 1
जनम, जनम से संचित पातक तत्क्षण ही निरवारे ।॥१॥
प्रासुक जल के कलश श्री जिन प्रतिमा ऊपर ठरे । ˆ
वीतराग अरिहंत देव के गूंजे, जय जयकारे ॥२॥
चरणाम्बुज स्पर्श करत ही छाये हर्ष अपारे ।
| पावन तन, मन नयन भये सव दूर भये अंधियारे ॥३॥
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