जैन पूंजांजलि | Jain Pujanajali

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Jain Pujanajali by राजमल पवैया - Rajmal Pavaiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जैन पूजांजलि राग द्धेघ शुभ अशुभ भाव से होते पुण्य पाप के बध | साम्य भाव पीयाषामृत पीने वाला ही है निर्बन्ध || श्री जैन पूजान्जलि एवं चतुर्विशति तीर्थकर विधान ॐ नम सिद्धेभ्य अभिषेक पाठ मै परम पूज्य जिनेन्द्र प्रभु को भाव से वन्दन करं । मन वचन काय, त्रियोग पूर्वक शीश चरणों में धरं ॥१॥ सर्वज्ञ केवलज्ञानधारी की सुछवि उर मे धरं । निर्ग्रन्थ पावन वीतराग महान की जय उच्चर ॥२॥ उज्जवल दिगम्बर वेश दर्शन कर हृदय आनन्द भरू । अति विनय पूर्वं नमन करके सफल यह नरभव करू ॥३॥ मै शुद्ध जल के कलश प्रभु के पूज्य मस्तक पर करं । जल धार देकर हर्ष से अभिषेक प्रभु जी का करूँ ॥४॥ मै न्हवन प्रभु का भाव से कर सकल भवपातक हरूँ। प्रभु चरणकमल पखारकर सम्यक्त्व की सम्पत्ति वरू ॥५॥ जिनेन्द्र - अभिषेक -स्तुति मेने प्रभु के चरण पखारे 1 जनम, जनम से संचित पातक तत्क्षण ही निरवारे ।॥१॥ प्रासुक जल के कलश श्री जिन प्रतिमा ऊपर ठरे । ˆ वीतराग अरिहंत देव के गूंजे, जय जयकारे ॥२॥ चरणाम्बुज स्पर्श करत ही छाये हर्ष अपारे । | पावन तन, मन नयन भये सव दूर भये अंधियारे ॥३॥




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