हिमालया की आग | Himalaya Ki Aag

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Himalaya Ki Aag by विन्ध्याचल प्रसाद गुप्त - Vindhyachal Prasad Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्विमालय फी आग १३ १६१४ को भारत, तिम्यत श्रौरं चीन फे प्रतिनिधियों ने हक फिर हीम जुलाई, १६१४ फो मारत और तिब्बत फे प्रतिनिधियों ने हस्ताप्र किए । वैसे माच १६१४ के भारत तिब्बत करार पर चीन की सहमति आवश्यक मो नदीं थी। इससे पहले तिब्बत ने ऐसी कई सन्धियाँ थी थीं, शिन्‍्दें उम्बन्घित सरकारों ने फेवल स्वीकार ही नहीं किया, बल्कि शनेकों दशफों से लागू वे भी थीं। --लद्दात् और कश्मीर से तिब्वत की एृ८४र की सन्धि में तिब्बत की परम्परागत परिचमी सीमा की पुष्टि की गई और व्योपा- प्कि सष्वन्य को नियमित क्रिया वया | यद सन्धि हमारे समय तक लागू, रदी । +इसी प्रकार १८५६ की नैपाल तिब्वत-सन्धि १०० एक सौ वर्ष तक लागू रही। इस सन्धि का स्थान १६५६ की चीन-- नेपाल-सन्धि ने लिया | “मेक मद्दान रेखा! तक के पूरे प्रदेश पर अद्दोम राजाओं ओऔर बाद में ब्रिटिश सरकार का शासन रहा | इस क्षेत्र की भ्रादिम जातियाँ पूरी तरह से श्रद्मोम राजाओं के श्रधीन भीं | --अ्रंगरेजी राज़ के समय, शुरू से द्वी श्रादिम जाति चेत्र पोलिटिकल एजेण्टों या पाल के जिलों के दिष्टी कमिश्नरौ के अधघीन रखा ग्रया। ये श्रफतर इस क्षेत्र मे कानूस व्यवस्था रखते ये, विभिन्न ग्रादिम जातियों के सम्बन्धों को नियमित करते थे और उन्हें दीवाली और फौजदारी मुकदमों फी सुनवाई का अधिकार था | जब भारत के श्रन्य मागो मे भन गणना होती थी, तो इन आदिम जाति क्षेत्रों में भी जनगशना की जाती थी | / * ब्रिटिश सरकार की नीति सामान्यतः श्रादिम जातियों के मालैम




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