देवीपैज कबिवर लाला मुकुन्दीलाल | Devipaij

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Devipaij by मुकुन्दीलाल - Mukundilal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देवोपेज । ११ | -नखिखिसियियिििििििएएएएपए न .... घनाक्षरी। ं '.... जे मानुप्रमा तमतोम को बिनाश करे, पच्छिन मोपटि | लेसे बाज हने छोपि के । तून-समुदाय पाय जारत कशानु जिमि, | खगन बिडारे जसे सिंह, मन चोपि के । प्रखर म्रबात लिमि | । वारिद प्रलोप करें, पन्नग पढ़ारें खगराज निमि कोपि के । | सुरन संहाय तिमि अस्बिका मुकुन्दलाल, देत्यबलबाहनी निपाति | प्रण रोपि के ॥ ४५ ॥.... के सुलना । देवि गन सूरतर समर समरत्थ बर, रथन पे रत्य धीरे तोरि डारें । काटि अति पुच्छ पद, चांथि के सुर्ड रद, कुन्त फरगंसि ! गज पेट फारें ॥ भज्ि बाहन घने, अश्व खचर हने, तुच्छ बेरिन गने डांटि मारें । बीर चिर्हकत परें बहुरि उठि उठि लरें देखि | कादर रुरैं हहरि हारें ॥ ४१ ॥ ॥ दादा |) सिमिटिरुघिरसरिताबहुत,मजतशतपिशाच । साकन्यादक गावता, करात जागना नाच ॥ .. घनाचारी । गिद्ध खग काक कट लास पे भपट्टा दे दे; ले ले मास नज ९» 1, हिए, चाच सा झकाश भड़रात है । एक उड़ि आवत विलोकि उड़ि | ज व की के हे न कक व ७ त एक; ऐसो तामे छोरि एक एकन को खात हैं ॥ बिचरत ाननतफनयगिकनकलपकतनककलणलणाानतीं” न” तकवससकि कक सककगग की लयरनुफतएफएफकवइडरापययदगयक्रटरयफिविव्स्‍्टधंकदसााद, ं न ं




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