फाग चरित्र | Fag Charitra

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Fag Charitra by मुकुन्दीलाल - Mukundilal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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...... पर चौपाई 1 |... सुरतबिचित्रा नारि नवेली । खेलु फाग कहूँ | | ज्ञाति अकेली ॥ काहें बदन दुरावत गोरौ । ने- ननि नेकु चित सो ओरी ॥ हरख मनावह सब कर छोरी । पतिब्रत घरम त्यागु भर होरी ॥ बो- | | लति नाहिं लाज की मारी । नई बधू नहिँ घूं- | चटठ टारी ॥ सुनि सुनि प्रभु बचनानि सकाती । |. कर इड्ञित करि बरजति जाती ॥ दे गारी हँसि चले कन्हाई । अपर नारि पहँ पहुंचे घाई ॥ कहे | | बिहँसि यह फाग-बहारू । बीरी अँचरा उड़त | सम्हारु ॥ छाड़ उरोज-गरब रो ग्वारी । यह गिरि | | ते सन्दर नहिं भारी ॥ दोहा । | ज्ञाबिघिपतिरतिबसकरति कोककलाकरिनारि । खेलु फाग सोइ चाव सों यह बहार दिन चारि॥ सोरठा । पिचुकारी की घार, कुच नौबी लौॉ लगि रही । | |! ठुठति न फूदी तार, मनइ रंग सोती खुली ॥




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