सुभद्रा अथवा मरणोत्तर जीवन | Subhadra Athava Maranottar Jeevan

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Subhadra Athava Maranottar Jeevan by सुभद्रा - Subhadra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मिट जार्यै | उदाहरण के लिए हिन्दुओं के पुनजन्मवाद ही को ले लीजिये । इस सिद्धान्त के मुसलमानों और इंसाइयों के धमग्रन्थ मानने के तेयार नहीं है| यदि ये दोनों धम वाले शान्ति के साथ विचार करें और धामिक कदट्टरपन के छोड़ परलोकवासियों से ` पूछें कि “क्या मनुष्य का पुन्जन्म होता है १?” और इस सिद्धान्त में उनका अनुभव जानने का प्रयत्न करें, तो यथार्थ बात जानने में बिलम्ब न लगे और मूगड़ा भी दूर हो जाय। इसी प्रकार आय- समाजा भाइ श्राद्ध तपंणादि को उपयागिता स्वीकार नहीं करे ` ओर तकवाद से इस विषय पर वितण्डाबाद करते हैं । यदि पर- लोक वासियों की सांज्षी से इस प्रश्न की मीमांसा करने के तेयार हों, तो यह मतभेद भी सहज हो में मिट सकता है। इन विचारों है । पर ध्यान देते हए, कहा जा सकता है, कि परलोक विद्या काः ` कायच्षेत्र बहुत विस्तीर्ण है और धार्मिक वादविवादों को मिटाने . के लिए यह एक अनुपम साधन है । अठः इस विद्या के प्रचार की नितान्त आवश्यकता हे। ध स्वर्गीय महानुभावों की पुख्यतिथियां मनाई जाती है । उनकी स्मृति में पुस्तका लय अस्पताल अथवा उनको पत्थर की मूतियाँ या उनके तेलचिच्र रखे जाते है । यह एक प्रथा सी हो गयी है । किन्तु उन स्वर्गीय महानुभावे की वास्तविक क्या इच्छा है, जानने का प्रयत्न केई नहीं करता। क्योंकि यह अ्रयज्ञ नितान्त ध |




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