ग्रामीण समाज | Gramin Samaj

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Gramin Samaj by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आमीण समाज १७ चूता खरिदिवा दिया ओर फिर तुम वदी जूता पहनकर वेणीकी तरफसे गवाम दे अयि ! खक्लू खक्‌ खक्‌ | गोविन्दकी ओँखें छाल हो आई। उसने पूछा--मैंने गवाही दी १ धर्म ०--गवाही नहीं दी १ गो०--चल झठा कद्दींका । धर्म०-- शठा होगा तेरा बाप ! गोविन्दने अपना टूटा हुआ छाता हाथमें छे लिया और उछल्कर कहा--अच्छा, तो आ साले ! घमदासने अपनी बॉसकी लकड़ी ऊपर उठाकर हुंकार किया और तब फिर खूब जोरोंसे खेंसना शुरू कर दिया। रमेश घबराकर दोनोंके बीचर्मे आ खड़े हुए और स्वंमित हो रहे | धर्मेदास अपनी लकड़ी नीचे करके खेँसते हुए. बैठ गये और बोले--मैं र्ब्तिमें उस सालेका बढ़ा भाई होता हूँ कि नहीं, इसीलिए, | सालेकी अक्किछ तो देखो-- - गोविन्द गॉयूछी भी अपने हाथका छाता नीचे रखकर यह कहते हुए बैठ गये- ट, यह साला मेरा वडा माई है ! शहरके हलवाई अपनी मद्दीका ध्यान छोडकर यह तमाशा देख रहे ये } चारों तरफ जो छोग काम धन्वेमें छगे हुए. थे, वे छोग भी यह हो-इछा सुनकर तमाशा देखनेके लिए आ पहुँचे | छडके-बच्चे खेल छोडकर छडाईका मजा लेने छगे ओर उन सब लेगोंके सामने रमेश मारे छजा और आश्रर्यके हत-बुद्धिकी तरह स्तव्ध होकर चुपचाप खड़े रहे | उनके मेंहसे एक बात भी न निकली | यह क्या हो रदा है ! दोनों दी वद्ध, मठे आदमी ओर ब्राह्मण- सन्तान हैं | ऐसी मामूली-सी बरातपर ये लोग नीच जातिके लेगोंकी तरह गाली-गखोज कर सकते ह | बरामदेमें बैठे हुए भैरव कपडोंके थाक छगा रहे थे और ये सब बाते देख ओर सुन रहे थे । अब वे उठकर वहीँ आ पहुँचे और रमेशसे कहने छगे--कोई चार सो धघोतियों तो हो चुकीं। क्या अमी और धोतियोंकी जरूरत होगी १ लेकिन स्मेशके मुंहसे हठात्‌ कोई बात ही न निकली। रमेशका यह अभिभूत भाव देखकर भेरवको हँसी आ गई | उन्होंने बहुत ही कोमर स्वस्ते समझाते हुए कहा-- छीः गौँगूली महाद्यय ! बाबू तो प्रिछककुल ही अवाकू हो गये हैं। बाबू, आप इन सब्र बातोंका कुछ खयाल न कीजिएगा । इस तरहकी 8121.




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