नागरी प्रचारिणी पत्रिका भाग 11 | Nagri Pracharini Patrika Vol 11

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Nagri Pracharini Patrika Vol 11  by महामहोपाध्याय राय बहादुर पंडित गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा - Mahamahopadhyaya Rai Bahadur Pandit Gaurishankar Hirachand Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिंदों की गद्-शीली का विकास २५१ ता इम उन्हें दिखाते कि जिसका वे झपनी विषदग्धा लेखनी से जम॑नो में बथ कर रहे हैं वह भारतवर्ष में ज्यापक ओ्रौर अमर हो रहा है |” उनकी गयय-शैली में प्रधान चमत्कार नाटकत्व का है। इस नाटकत्व झौर वकक्‍ठ॒वा की भाषा में विशेष अंतर न मानना चादिए। ओता किसी विषय का सुनकर अ्रधिक प्रभावित हो, केवल इस्र विचार से एक ही बात फो, इधर उघर कई प्रकार से, कटे वार्यो में कहा जाता है । “राम नाम ही झब केवल हमारे संतप्त हृदय का शातिप्रद है জীব राम नाम ही हमारे धधे घर का दीपक है,” “यही इबते हुए भारतवर्ष का सहारा रै भरौर यदी धरे भारतके हाथ की लकड़ी ই”: इत्यादि वाक्यांशों में वक्‍्तृतामथ कथन का भ्राभाख स्पष्ट मि्तता है। इतना ही नहों, कथन की यही प्रवृत्ति कभी कभी बड़े बिरतार में उपस्थित द्वोती है। सार्शश यह कि मिश्रजी की भाषा बडु प्रौद, भोजस्विनी, परिमाजित एवं सतर्क हुई है; उसमें उत्कृष्टता धनौर श्रोज का भच्ा सम्मेलन रै; नाटकत श्रौर वक्तृत्व का स्थिर सख1मंजस्य पाया जाता दै । एक छोटे से भवतरण से इनक्गी सारी विशेषताएं शेख क्ली जा सकती ई | “आय वंश के धर्म-कर्म और भक्ति-भाव का वह प्रवछ प्रवाइ-जिसने एक दिन घड़े बड़े सन्‍्माग-विरोधी मूघरें का दर्प दहन कर उन्‍हें रज में परिणत कर दिया था--और इस परम पवित्र वंश का वह विश्थव्यापक प्रकाश-जिसने एक समय जगत्‌ में अधकार का नाम तक न छोड़ा था--- अथ कहां है !......जो भपनी व्यापकता के कारण प्रसिद्ध था, अब उस प्रवाह का प्रकाश मारतवर्षं में महीं है, केवर उसका नाम ही भवश्िष्ट




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