जैन सिद्धान्त प्रवेश रत्नमाला भाग - 3 | Jain Siddhant Pravesh Ratnamala Bhag - 3

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Book Image : जैन सिद्धान्त प्रवेश रत्नमाला भाग - 3  - Jain Siddhant Pravesh Ratnamala Bhag - 3

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) (४) भाव बंध - शुभाशुभ भावों में ग्रटकना वह শা बध हैं । (५) भाव सम्बरन=बुभायुभ भावों का रुकना श्रौर शुद्धि का प्रगट होना वह भाव सम्वर हें। (६) भाव निजेरा--भ्रशुद्धि की हानि और शुद्धि की वृद्धि वह भाव तिजंरा है । (७) भाव मोक्ष =परिपूणे अशुद्धि का झ्रभाव और परिपूर्ण जुद्धता की प्रगटता वह भाव मोक्ष है । प्रझन (३१)-संवर निजरा और मोक्ष की प्राप्ति किसके झाश्रय से होती है श्रौर किसके श्राश्य से नहीं होती ? उत्तर- एक मात्र श्रपने त्रिकाली भूतार्थं स्वभाव के श्राश्रय से ही सम्वर निजरा मोक्ष की प्राप्ति होती है नौ प्रकार के पक्षों से कमी भी नही होती है इसलिए पात्र जीवों को एकमात्र भूतार्थ स्वभाव का ही भ्राश्रय करना चाहिए ऐसा जिन, जिनवर श्रौर जिनवर वषभों का आदेश है । प्रन (३२)-साततत्वों में हेय, उपादेय, ज्ञेय कौन कौन से तत्व हं? उत्तर-(१) जीव =श्राश्रय करने योग्य परम उपादेय (२) भ्रजीत्र ज्ञेय (३) গান और ब॑घ=हेय भ्रौर प्रहितरुष (४) सम्बर निजंरा-=प्रमट करने योग्य उपादेय (५) मोक्ष ८ पूर्ण प्रगठ करने योग्य उपाद्रेय




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