विविधार्थ | Vividharth

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Vividharth by डॉ० भगवान दास - Dr. Bhagawan Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पे ~ की ( मे ) उत्तर प्रदेश मे. अश्व-चिकित्सा की विद्या प्रायः मुसलमानों के ही हाथ में रह गई है । इसका मुझे निजी अनुभव है; पचास वप्रं से ऊपर हए, मेरे एक अरबी घोड़े के अगले दोनों पेरों मे 'हड़ा! ( अंग्रेजी 'स्प्लिट' ) हो गया था, पाश्चात्य वेट्रिनरी? ( पशु-चिकित्सक ) डाक्टरों ने गोली से मार देना ही एक-मात्र उपाय बताया, किन्तु एक मुसल्सान सलोत्री ने औषध से, जिस का मुख्य श्रवयव हाथी-हाँत का चुण था, अच्छा किया । यह सब विद्या भी आयुर्वेद का ही अंश हैं, लुप्त हो रही है, जिस का उद्धार करना चाहिये । कई वध हुए उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिला के एक ग्रामवासी वृद्ध सज्जन से में ने सुना कि उन्‍्हों ने एक मित्र के पास 'अन्निसंहिता? की पुस्तक देखी थी, उस में नाडियों के ही विषय पर अधिक लिखा था। नाडी शब्द लिख कर मन संदेह मे पड़ जाता हैं। आजकाल जिसको 'नाडी” देखता कहते हैं उस को पाश्चात्य विज्ञान के अलुसार 'धमनी? ( आर्टेरी ) देखना, पल्स काउच्छिङ्गः ८ धमक की गिनती ) कहना चाहिये । पाश्चात्य वेज्ञानिक तो 'पल्स”ः और ताप-मापक श्यर्मामोटर' से रुधिर की বানি ক্সীব ज्वर की मात्रा ही जानते हैं, पर कुशल वेग्य नाड़ी की परीक्षा करके रोग-विषयक बहुत-सी बातें जान लेते है, जिन कौ खन कर पाश्चात्य डाक्टर चक्षित होते हैं, क्योंकि रोगी से पूछने पर उन को विंदित होता दे कि जो अनुमान वैद्य ने किया, वह ठीक है । ऐसी ही दशा 'स्लोतस”, 'सिरा', ल्ायु! आदि शब्दों की है। आयुर्वेदीय शारीरः और पाश्चात्य 'ऐनाटोमी-फिजियोलजी' का समन्वय करना, बहुत आवश्यक कार्य हैं; बिना इस के, वथ ओर डाक्टर एक वूसरे की बात समझ नहीं सकते । अंग्रेजी मे, ज्ञानवाहक ओर, क्रियावाहक, दो प्रकार के अति सूछ्म तन्तुओं को (न्व कहते हैं । बाह्य पदार्थों का ऐन्द्रिय ज्ञान इन सच्ठम ज्ञानवाही नर्वों! द्वारा ६ जिनको 'डंड्राइट” कहते हैं ) मस्तिष्क में स्थित विशेष-विशेष कन्दों' में, पहुँच,कर




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