ग्वालियर राज्य में प्राचीन मूर्तिकला | Gwaliyar Rajya Men Prachin Murtikala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
68
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)छोटे वेज्टन-प्रस्तर-खुण् में बड़े खण्डों के समान पद्म-बेल द्वारा पाँच सन बतलाए गए हैं। पहले खन में बुद्ध-चिहन की
पिठारी सिर पर रखे हाथी है । चौथे खन में वोधिव॒क्ष है, जिसके दोतों ओर स्त्री और पुरुष हैँ। पाँचवें खन में, जिसमें स्तूप
है, दाहिनी ओर उपासिक्रा खड़ी है । दूसरे खन में दो व्यतित है, जिसमें से एक भरा हुआ थाऊ लिए है । दूसरा ध्वजा लिए
है। तीसरे खत में एक स्त्री और एक पुरुष है जो गायन-वादन कर रहे हे ।
वड़े खम्भों में वोधिवृक्ष की पूजा दिखाई गई है । इस दृश्य (चित्र ७) का अंकन बहुत अकुशल हाथों हारा किया.
गया हूँ और अधंचित्रों के अत्यल्त अविकृप्तित रूप का परिचायक है । मूतिकार बोधिवुक्ष और नौ उपासकों का संरिरष्ट
चित्र बतलान में असफल रहा है । पहली पंक्ति में वोधिवृक्ष बना है, फिर नीचे तीन पंक्ति मे तीन तीन उपासक हैं । अन्तिम
पंक्ित के उपासकों का इस समय केवल सिर का कुछ भाग शे ष रह गया हू । स्तम्भ के छोटे दुकड़े पर अंकन अधिक रुचिर
हं । इसके एक ओर संगीत का ईरय दिखाया गया ह । ऊपर एक सिंहासन है । आठ स्त्रियाँ विविध वाद्य बजा रही हे ।
बीच में एक दीवक जऊ रहा है । इसमें वीणा, मुरली, मृदंग आदि वाद्य स्पष्ट दिखाई देते हे।। इसी स्तम्भ-खण्ड के
दूसरी ओर नीवे-ऊपर दो खब है। ऊपर के खत में वत॒ का दुह्प है। चार मुग और दो मोरें अत्यन्त सुन्दर रूप में बनी
हुई हैं। ऊपर का कुछ भाग दूठ गया है। नीचे के खत में दो घोड़ों के रब में एक राजपुरुष दिखाया गया है। एक
पारिषद छत्र छिए हुए हैँ और दूधरा चामर। रथ के नीवे को ओर दो व्यक्तियों के सिर से दिखाई देते হা
पाँच सूची प्रस्तरों में से चार में सुद्दर एवं विविवि प्रकार के फुल्ल कमर हैं। एक में वोधिवृक्ष के दोनों ओर
दो उपासक दिखाए गए हो।
इत अर्व चित्रों में उस समय के वेश-भूपा तथा सामाजिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता हं ।
पुरुषों के सिर पर भारी साफासा वेंवा रहता था जिसमें सामने और पीछे गुम टीसी उठी रहती थीं। यह भारी-
भरकम शिरोभूषा युक्त एक सिर गूजरी-महजल संग्रहालय में रखा हुआ है। यदि इस शिरोभूषा को शंंगकालीन यक्ष की
शिरोभूषा से तुलना करें तो ज्ञात होगा कि यह भारी साफा उस काल तक अधिक सरक हो गया था। गूमतियाँ
गायब हो चली हें। छोटे खंभे में राज-पुरुष के साथ जो दो पारिपद हैं उनके ऐसे साफे नहीं है। अतएव यह ज्ञात होता है
कि इस प्रकार का साफा समाज में विशिष्ट स्थिति का प्रमाण है। पुरुष कानों में भी भारी आभरण पहने दिखाए
गए हैं। स्त्रियों के केश-विन्यास भी विशेष प्रकार के हे। सिर के चारों ओर गोल चक्कर के ऊपर गोल टोपसा ह् ।
नीचे के बाल कही कटं गर्दन तक भी आए ह । पुरुषों के शरीर पर कोई वस्त्र नहीं ह । केवर कमर के नीचे धोती
बँवी हुई हं । सामने पटली हूं ओर धोती प्रायः घटने के नीये तक दह । गजे से पेट के ऊपर तक आनेवाली मालाएु ह । हाथों
में चूड़े हूं । स्त्रियाँ भी छाती और पेट पर कोई वस्त्र पहने दिखाई नहीं देतीं। कानों मे भारी वाटे, हाथों मे चूड़े और गले
मं मालाएं हैं। हाथियों पर झूले हँ; परन्तु घोड़ो का साज अधिक अक्कृत है । दो घोड़ों का रथ भी दर्शनीय है। राज-
| इस प्रकार के गीत-नृत्य का दृश्य ग्वालियर की सीमाओं में मेरे देखने में तीन स्थानों पर आया है । पहला
सोर्यकालीन बेसनगर में प्राप्त बाड़ पर है; दूसरा उदयगिरि में है ?और तीसरा पवाया में है। यद्यपि चौथा
बाग गृहा की भित्तियों पर चित्रित हुं परन्तु वह इन सबसे भिन्न है। इन सब दृश्यों में अनेक समानताएँ
हैं। एक तो यह सब पूर्णतः स्त्रियों की पंडलियाँ हें, दूसरे हमारे विषय से वाद्य में समानता है। उदयगिरि
का स्त्रियों का गीतनृत्य जन्म! से सम्बन्धित है, ऐसा डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल का मत हूँ । उन्होंने लिखा
हैँ कि इस उत्सव को जातिमह ? कहते थे। विशिष्ट जन्म-उत्सव के अंकन में संगीत का प्रदर्शत भारतीय
कला की प्राचीन परिपाटी थी। (ना० प्र० प०, सं० २०००, पृष्ठ ४६)॥ डॉ० अग्रवाल का मत
उदयगिरि के दृश्य के सम्बन्ध में ठीक नहीं जेंचता। बेसनगर का दृश्य बुद्ध-जन्म से सम्बन्धित हो-सकता
है, परन्तु उदयगिरि का दृश्य शंगा-यमुना' के जन्म से सम्बन्धित न होकर उनके समुद्र के साथ विवाह से
सम्बन्धित है। गंगा-यमुना को समुद्र की पत्नी भी कहा है। पवाया का दृश्य किस 'जातिमह” अथवा
विवाह से सम्बन्धित हं यह् दमे ज्ञात नदीं क्योकि वह् किंत मन्दिर का तोरण है यह सालूम
नहीं हो सका।
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