आवृत - अनावृत | Aavrit - Anavrit
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
208
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जससे उसकी ग्रध्ययन सम्बन्धी प्रगति सनन््तों উদ্ভীট হট) वही
न्तुप्ट थी । एक दिन उसने कहा भी था --“मैं सोोचतं दल उस दिन
प्रा अनुरोध स्वीकार न करते तो झ्राज यह रह
तञ्च हु ।'/ টিজার ছি
“तुम गलत सोचती हो | तुम्हारी बात को नकारने की सामथ्य भला
पुभमे कहां ? तुमने भ्रवसर दिया इसलिए मैं हो झृतज्न हु ।” श्रापके बजाए श्रमित
मव स्मिता को “तुम” कह कर सम्बोधित करता था, श्रारम्भ मे उसने हो ऐसा
कहने को कहा था। उनमें थोडी-बहुत ब्रात्मीयता श्रां गई थी। रोज-रोज का
पम्बन्ध किसी भी रूप में क्यों न हो, कुछ निकटता तो ला ही देता है ।
“ग्रापका ज्ञान श्रथाह है। निश्चित रूप से मैं लाभान्वित हू। मु
प्रमन्नता है. कि आप मेरे व्यक्रितत जीवन के विविध क्षेत्रों से सम्बन्धित उपयुक्त
परामश देते हैं जिससे जीवन के प्रति जीने थौर सोचने के नजरिए के परिवर्तन
फो मैं महसूस करने लगी हू /
इन्ही स्मृतियों में भ्रमित खोया পানা । | अचानक घड़ी की ओर निगाह
गई । देखा चार बज रहे है। वह भमटपट तैयार होकर साढ़े चार बजे होटल में
पहुंचा और स्मिता के कमरे की घंटी उसने बजायी । स्मिता ने तुरन्त दरवाजा
बोल । उसने देखा स्मिता उसे निहार रही है। लगता था कि वहू समय पर
तैयार होकर प्रतीक्षा कर रही थी । झमित ने कहा “भरे, तुम तो तैयार भी हो
गई । मैं सोच रहा था कि तुम सफर से थकी हुई हो । देर तक सोझोगी 1*
“अरे जनाब । घड़ी देखो । शाम के साहू चार बज रहे है | दो बजे हम
लोग यहाँ ग्राए थे । क्या सोते ही ইলা ই?
सारी स्मिता । मुभ समय का ध्यान ही न रहा । जीवन में खुशी के कुछ
पल कभी कभी ऐसे झाते है कि समय का पता ही नहीं चलता ।”
“चलो, कोई तो मिला जिसकी मुभसे प्रसन्नता मिलती है। इन्तजार
फरते-करते अभी वेटर से मैने भपने और तुम्हारे लिए चाय को कह दिया है ।*
इसी समय बेटर चाय ले श्राया | स्मिता ने एक कप ग्रमित को दिया श्रौर
दूसरा स्वयं ले लिया 1 अमित ने चाय पी । पीते समय हूं स ने पूछा-- अ्रब
भ्रागे का क्या प्रोग्राम ই?” , ` ८: - दप
नध्रोग्राम कया ? मबूर होटल मे ;खा्ुा-लायेगेन्कु-धूमेगे । प्म
दखकर था जायेंगे । ক
“नही खाना यही मंगवा लू भी | है
घमने जरूर चलेंगे ।” इ
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