रामसनेही सम्प्रदाय | Ramsnehi Sampraday

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Ramsnehi Sampraday by राधिकाप्रसाद त्रिपाठी - Radhika Prasad tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अध्याय॑ विषय-प्रवेश राभस सम्परटाय निगुण पथ की ত্ক লন্ন গনিত কিল্য অয অনু शाखा ह । रिदी के निगुण पय्‌ का লনু্ীলন্ কলে তথ বিহার ने समय-समस प८ इसके साहित्य और साथक्ना को प्रकाश मे लाने का সম किया किन्तु अध्ययन का रमति भमत मद रही । इसके दो कारण थे--पहला जौर सबसे प्रभात घर हिंदी के सीमात प्रदेशों एवं अहिंदी भापा-माप्री प्रातों मे इसको उद्भव विकास तथा दूसरा था दुग॒म ग्रामीण क्षेत्रो में इसके अधिराश परीठो जोर साववा न्पलो का स्थित होगम । इन कटिनाइया को पार कर माप्प्रदायिक कंद्रा से सामग्री दूँढ ^ निकानना साधारणं काय नही या । नत इच्या रबव दए मो यनूषमिु माश्यरगािक साहित्य एवम साधवा के सम्यक विवेचन का साम न वर सङ । राजस्थानी साहिताके अजेपका ने भी इस ओर ययेष्ट ध्याव नदों दिया । एसा स्थिति में ले यताओं को ध्यान यदि इस आर गया भी तो अर्पातित सामग्री के अभाव मे उनका अनुशोन पामाय परिचय से आगे न वढ सका । आलोच्य सम्प्रदाय क्रा प्राय सम्यूण साहिय अभो तक हस्तलिखित रूप मे राजध्यान, म य प्रदेश और गुजरात के विभितर भागों में स्थापित साम्प्रटायिक पीठो में विद्वरा हुआ है। इस सम्प्रदाय क मंहामा वाणी की गुरु का अवतार मानते हैं और उसको पूजा करत है 1! अत अपनी पूजनीय वस्तु वा सर्वसामा-य के लिए सुलम करने से उह इस वात का डर रहता है कि कही वह किसी एस व्यक्ति के हाथ মন पड जाय जो उसका उुवित सम्मान न कर सके । यही कारण है कि वे वाणों प्रकाशन के सर्वया विरोधी हैं। प्रसिद्ध है कि पहले पहल जय सम्प्रदाय के छुछ उत्सादी एवम्‌ साहिल् प्रेमी मदामाओं ने “रामचरण जी की अदामवाणी' और ^ तरी समसे धर्मप्रकाश * का प्रकाशित क्राव को योजना बनाई तो पुरादो पाठ़ी के रूचा ने इसका घोए विरोध किया था । ऐसी स्थिति मे वाणी-प्रकाशन की एक क्षीण पराम्परा तो चनी कितु प्रकाशित ग्रथ प्रामान्य रूप से बाजारों मे उपचब्ध नहीं हो सरू। उसे ग्रथों का मूष्य प्राय “पप्रेमपराठ” होता था और सम्पदाय বালি उहें कवल ऐस व्यक्तिया को भेंट करते थे जिनकी सुपातरवा पर छह पूरा विश्वाय हो जाता था । इसो का परिणाम है कि सम्पदाय का प्राय सम्यूस स्राहित् साम्प्रदायिक कंद्धा पर कपडे की सात सात, आठ आठ तहा म बेंधा हुआ बाज तक पढा रह यद्मा 1




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