डायरी के कुछ पन्ने | Dayari Ke Kuchh Panne
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
108
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डायरीके कुछ पन्ने १३
अच्छा है ! मैने कप्तानतक दौड-धूप की, उनका विचार बदले, इस-
की काफी कोशिश की । पर हुजरते दाग जहां बेठ गये बठ गये !
गांधीजी तो टस-से-मस भी न हए । आखिर पडितजीने अपना
जोर आजमाना शुरू किया । उन्होने आग्रह् किया किं गांधीजी
फस्ट॑का टिकट वदा छे । सध्या-समय धूमते-घूमते मने भी
थोड़ा- आग्रह किया। गाधीजीने पूछा--तुम क्यो आग्रह হল
छगे ? . मेने कहा--आपने टिकट तो सेकडका ल्या हे । कितु
आपकी प्रतिष्ठाके कारण फस्टके तमाम हक ' आपको स्वत
मिरु जायगे । फस्टंकी छतपर कनात लगाकर आपके लिए
प्रार्थना-धर बनवा दिया है क्या यह् उचित नही कि आप फरस्ट-
के पैसे ही दे दें ? गाधीजीने कहा--नही, इस दलीलसे तो
यह सार निकक्ता ह , कि हम फस्टेंके तमाम हकोंको स्वयं
त्याग दे । नतीजा यह हुआ किं गाधीजीने फस्टेकी छतपर घूमना
उसी समय बद कर दिया । प्राथनाकी कनात तो एक ही दिन
काम জাই । आज तो उन्होने प्राथना. अपने निकम्मे स्थानपर
ही की ।
प्राथना करते समय जहां गाघीजी ध्यान करते थे, वहा मं
यह् सोचता था कि भगवन्, प्रार्थना समाप्त हो तो यहासे उट् !
बेठनेवार दो मिनिटमे ही आधे बीमार हो जाते हुं । वमन नही
हुआ, यह् सेरियत हं । कहते हं जहा चाद-सूरजकी गति नही ह,
वेहां भगवान् विराजते हं } हमारे जहाजके बारेमे यह कु अरामे
कहा जा सकता हं कि जहां भरु आदमियोकी होश-हवासके साथ
गति नही है, वहा गांधीजी विराजते है। कोई मिलनेवाला जाता
है, तो एक मिनिटसे ज्यादा रुकना भी पसंद नही करता । बंबईसे
चलते ही समुद्र तूफानी हो गया । इसलिए गाधीजीका स्थान एेसा
रहता हं, जंसे हिदुस्तानका डोलर-हिडा ।
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