हम सब मंसाराम | Ham Sab Mansaram
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हम सब मसाराम : 17
में उसका जवाब नहीं था ।
खाल उतारने के वाद जानवर को ऐसी जगह डालना होता
था जहाँ उसकी हड्डियों के ऊपर से सारा मांस परिन््दे या छोटे
जानवर खा जाएं । हां इससे पहले वह इन जानवरों के पेट से
काम की कुछ और चीजें भी निकाल लेता था । इनमें ग्रांतों की
लम्बी-लम्बी रस्सियां होती थीं जो सुखने के वाद बेहद मजबूत
डोरी जैसी बन जाती थीं और कुछ भिल्लियां भी होती थीं
जिन्हें सुखाने के वाद बहुत पतला चमड़ा तैयार हो जाता था।
आंतों की इन रस्सियों को 5ई धुनने वाले लोग खरीद लेते थे
या फिर उनसे धनुपों की प्रत्यंचा बन जाती थी। भफ्िल्लियों का
उपयोग तो बहुत हो मजेदार होता था। बांस और मिट्टी के
थ्याले लेकर इसकी भिल्ली मठने के वाद बेहतरीन चिकारा वन
जाता था जो शहरों में बच्चों के हाथों मजे में बिक जाता था।
'भिल्लियों से न॑स्दीं-नन्ही ढोलकें भी मढ़ ली जाती थी जिन्हें मेलों
में लोग खरीदते थे।
इस वस्ती का भ्राकार श्राप ग्र्धचंद्राकार मान सकती हैँ । इस
अर्धचंद्र की कमर के पास बहुत मेले और काले रंग के पानी
और कीचड का एक गड्ढा है। इस गड्ढे के वहुत से इस्तेमाल
बस्ती वालों के लिए रहे हैं। यह हमाम भी हो जाता है श्रौर
चेशाबधर भी । पीने वाले पानी का स्रोत भी होता है और वस्ती
की मोरियों से श्राने वाले सड़े पानी को एक जगह समेठने वाला
सीवर भी ।
यह अ्रजीब गड्ढा है। एक-दो बारिश न होने और सूखा पड़
जाने पर जब कुएं भी सूख जति हैं, इस गड्ढे मेँ गीलापन वना
ता है, भले ही पानी थोड़ा ज्यादा काला और गाढ़ा हो जाता
हो।
इस गड्ढे के एक सिरे पर छेदी को झोपड़ी है और इसरे
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