न्यायकुमुदचन्द्र | Naya Kumud Channdra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
55 MB
कुल पष्ठ :
652
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)॥ आदि वचन॥
~ ~~ -~-~ = ~~ এআর
भारतीय दशनशाम्रका इतिहास अल्न्त प्राचीन है। भिन्न भिन्न समयमें अधिकारिभेदसे
अनेक दशनोंका उत्थान इस देशमें हुआ | हृहय जगतके सम्पर्कसे विभिन्न परिस्थितियोंके
कारण मनुष्यके हृदयमें जो अनेक प्रकारकी जिज्ञासा उत्पन्न होती हैं उनका समाधान
करना ही किसी दशनका मुख्य लक्ष्य होता है। जिज्ञासाभेदसे दर्शनोंका भेद स्वाभाविक
है। भारतीय दर्शनोंमें जनदशनका भी एक प्रधान स्थान है । इसका हमारी समझमें एक
मुख्य वैरिष्स्य यह् है कि इमके आचायनि प्रचलित परम्परागत विचार और रूढ़ियोंसे
अपनेको प्रथक् करके म्वतन्त्र रृष्िसि दारीनिक प्रमेयोके विदटकेपणकी चेष्टा की है। हम
यहां विदलेपण शच्दका प्रयोग जान-बृझकर कर रहे हैं । वस्तुस्थितिमें एक दाशनिकका
का4- जिस प्रकार एक व्याकरण टाब्दका व्याकरण अर्थात् विदलेषण, न कि निर्माण, कएता
हे-इसी प्रकार पदाथके सम्बन्धसे उत्पन्न होनेवाले हमारे विचारों और उनके मम्बन्धोंके
रहस्यका उद्घाटन करना होता है। 'पदा्थोंकी सत्ता हमारे विचारोंसे निरपेक्ष, म्वतः सिद्ध है'
इस सिद्धान्तको प्रायः छोग भूल जाते हैं । हम समझते हैं कि जेनदशनका अनेकान्तवाद,
जिसको कि उसकी मूलभित्ति कहा जा सकता हे, उपयुक्त मूलसिद्धान्तकों लेकर ही प्रवृत्त
हुआ है ।
अनेकान्तवादका मौलिक अभिप्राय यही हो सकता है कि तत्त्वके विपयमें श्राग्रह न
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