प्रवीन पथिक | Pravin Pathik

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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তাল ৮ पर से उतरा आर इन छोगों के जाने चाद चह বানী ঘা জী নর पर से उतरा है द्रस्ते ड तट सं जाकर एक फोपरी मे धुमा জী बहुत से रस्त की শান্ত ম ৰা সি सी ৭ छा ০. টি थी । रुपये को उसने जमोन पर कं दिया सर অই উ নীতা, লক सोल ' मुझे उस्तके हाथ से रुपया लेता पडा जिसको में अपना जानी टुइनन समके था जौर जिससे बदला रेने फे लिये कसम खा चुका धा! है एफ जादमी ने जो डसी मोोपढी सें बेठा था जल्दी से उप्त रुप को उठा लिए बोर पूछा, “क्यों दोस्त ! तुम्हें किस बात का रज हुआ :” २० । इुछ नहीं, लो तुम अपने कपडे छो और मेरे कपडे मुझे दो के ৭ जिसमें ২৩ ৯৯, प्र दोड सा पानी भो छा दो जिसमें में अपने बदन आए सिर की मिट्टी थे, दालू । | ও रत देहा० । क्या ठु्दारा वह काम नहीं हुमा जिसके दिये तुम्हे प्रत पव्टनारएडीधी १ २० । উই হলজ ভু सतर सी, समसे पानी दो तथा देर रयम हयियार सोर घोडा रे माओ | एस भोषडी के मालिझ ने चैषादी क्षयि सौरं वड्‌ ्रुडा दाय सुह धो घोर श्षएना टिवास पदिन घोडे पर सवार दो गया घव घग्र मख- दीन ट्से देपतातो साफ पहिचान जाता क्योंकि यह वही বাজী গা जिएपगे दोटी देर पहिएे उपका मुकाविछा किया था । प्षणादोन छने दोनों सुनाहवों के साथ उसी सठक पर दल पदा + धर गाजी ने धोखा देकर उन्हें बहकाया या जाने को कहा था सगर इन रोणो से इस बूटे के बारे से আত হীন বা । रेया०। क्या जापदे उसफो वढमारी पर ध्यान नहीं दिया २ जपनो -৩। মিতা थे देटों के साध सेरता था और आपकी बात का जवाब ४5५ उए प्व कर नहों दिवा, किप वेपरवाही के साथ उसने राह बतलाई! ই শী शरपओ इशारे दे साथ दुछ হী माटूम होती ची ।




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