राजस्थानी गध्य शैली का विकास | Rajasthani Gadhya Shaili Ka Vikas

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Book Image : राजस्थानी गध्य शैली का विकास  - Rajasthani Gadhya Shaili Ka Vikas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ 15 साहित्य में मिरन्तर विपयानुसार बोलचाल एवं साहित्यिक भाषा शैली का प्रयोग चलता भ्रा रहा है। सामान्य विषयों का प्रतिपादद साधारण बोलचाल की शैली से 'ही उपयुक्त प्रतीत द्वोता हैँ जबकि गरिमायुक्त एवं उल्ृष्ट विपणो की अभिव्यक्ति साहित्यिक भाषा शेलीमें ही की जानी चाहिए । बोलचाल की भाषा में सहज सरलता होती चाहिए तथा उसकी शब्दावली दैनिक व्यवहार की होनी चाहिए तथा गुणों, शब्द-शक्तियों एवं विशिष्ट भ्लंकारों भ्रादि के उचित क्रम संगठन से साहित्यिक भाषा का निर्माण किया जा सकता है। साहित्य में भाषा के किसी एक पक्ष का नही भवितु सर्वाग का प्रयोग किया जाना चाहिए। साहित्य में त्रिपयानुनार विशिष्ट शंलियो का विकास सम्भव है। बेशानिक विषयों के प्रति- पादन मे विशिष्ट भाषा का प्रयोग विपय को विलष्ट वना देता है, श्रतः विषयवस्तु को ही भाधार बनाकर सामान्य भाषा का ही प्रयोग करना चाहिए। भाषा की प्रकृति उनके शब्दों की बनावट, भाव व्यक्त करने की प्रशालियो, क्रियाओं और मुहावरों तथा वाक्‍्यों के क्रमिक संगठन से ही प्रकट होती है । उत्तम और सुव्यवस्थित शैली लेखक का सक प्रधान गुण होने पर भी कोई शैलीकार उसी के बल पर महान नही हो सकता । किसी विपय के लिखने की प्रक्रिया को जान लेने के लिए यह भी जान लेना स्‍्ावश्यक है कि उसने क्या लिखा है ? यदि विषयवस्तु मे सार है तथा परभिव्यक्ति की दृष्टि से विपय स्पष्ट है तो वह ग्रहणीय होगा चाहे वह किसी भी शेली में क्यो न लिखा गया हो । शैली न कैवल भाषा की प्रमिव्यंजनात्मक शक्ति की परिचायक ही है भ्रपितु एक व्यक्तित्व का दूसरे व्यक्तित्व को प्रभावित करने का साधन भी है । शैली के विभिन्न श्रोतो मे व्यक्ति वेशिप्टूय भी एक महत्त्वपूर्ण ख्रोत है जिसका सम्बन्ध शैलीकार के व्यक्तित्व से है। हिन्दी मे अंग्रेजी के অর্মনিততী (25750021105) ছার पर्याय के रूप में व्यक्तित्व शब्द श्रचलित है । “व्यक्तित्व” मनुष्य की प्रान्तरिक क्रियाप्रों, गुणो एव मान्यताप्नो फ़ प्रकाशन है । मेक्डूगल ने व्यक्ति कौ समस्त मानसिक शक्तियो एवं प्रवृत्तियों की पारस्परिक धनिष्ठ क्रिया प्रतिक्रिया की समन्वित इकाई को व्यक्तित्व माना है 1 प्ररस्तु, लजाइनस, गेटे, वेस्टर फील्ड, मिडलटन भरी, हरबर्टे रीड, एफ. एल. ल्यूकास -प्रादि ने शैली मे व्यक्तित्व को स्वीकार किया है ।* शैली को व्यक्तित्व पर पूर्ण आधारित मानकर बफन ने कहा है कि “शैली व्यक्ति ही तो है ४/* जीवन के प्रत्येक क्षेत्र मे व्यक्तित्व उसके कृतित्व को प्रभावित करता 1. (५ एणण्डभा-^८ इपर एर ज धा फला २ ६24५८ चत्‌ 010৩০ 0903 27 00617 001100815 102 0155 8060616650৫ {271-1932, ए. 360. 2, 80101610011 405-016 ৮০0৮]5 ०1 8196, 9. 71. 0०116 -.. 4 9 वता ः§ 516 15 2 किणि (०४ ण 015 1१7५. 71109 67 10100100915 01 11১07821715, (९946 ०610... 51916 15 {€ त7६5ऽ ग (71008015. 1४9. नतलाएला॥ 2680 : १९151 7०56 8116 -1928 20107, 9. 85. 3. एधि ; “ 51#16 15 3 आर 05 ००, 1६ ३5 एक ग 5 ৪0075 1८ ও 10151100809 01701000505, ५




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