शौकत उस्मानी | Shaukat Uasmani [ Vyaktitva Avam Kratitva ]

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Shaukat Uasmani [ Vyaktitva Avam Kratitva ] by गिरधारीलाल व्यास - Girdharilal Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चरण 17 अश्लील और जगली होते है।” भारत में एलो-इडियन प्रेस लगातार प्रचार कर रहा था। उस्मानी का काफिला उत्सुक था किसी बोल्शेविक को देखने के लिए, लेकिन यह क्या, जब वे सामने आए खुबसूरत चिद चेह क्षिति के कले लोगों से गले मिलते है. हर बात में “कॉमेरेड' कह कर उच्यस्तरीय भानेवीय व्यवहार का परिचय देते है. हर प्रकार की सहायता करते है। रे तिरमिज़ में आशातीत स्वागत। गगनभेदी मारे गूज़ रहे है- हिन्दुस्तानी इन्कलाब जिन्दाबाद।' “दुनिया भर में इन्कलाब जिन्दाबाद्‌! मानवता का फैलता हुआ समुद्र-हसी तुर्कमानी सर्ड उज्बेक और ताज़िक। यूरोप और एशिया के नर-नारियों ने एक साथ मुद्ियौ तान कर शस्तौ को कतारबन्द करे दिया था। शौकत ओर साथियो की थकान जाती रही इसकी बजाय वे अत्तिथि सत्कार से आह्वादित हो रहे थे। इसके बावजूद जल्दी ही काफ़िले को उसके कट्टर खिलाफतियों ने विभाजित कर दिया-तुर्कों के सहयोगियों और भारत की स्वतत्रता के लिए समर्पित साथियों में। एक दल तुर्की जाने को आमादा हो गया। दो मावो को प्रबथ किया गया क्याकि सोवियत प्रशासन अपने ऊपर इस मिथ्या आरोप का लगना स्वीकार नहीं करना चाहता था कि उसने बोल्शेविक विरोधियों का कत्ल कर दिया और अपने पक्षघरों को जिन्दा रखा। कारण था-तुर्किस्तान के उस हिस्से में से यात्रा करमे का जानलेवा खतरा मोल लेना जो प्रतिक्रातिकारियों के कब्जे में था। तिरमिज़ के साथियों ने खतरे की पूरी चेतावनी दे दी थी। रत को नावे भवर मँ फस गईं थी लेकिन गनीमत यह धी कि सभी सोए हुए थे इसलिए अस्तव्यस्तता से बचाव हो गया अन्यथा नार्वे उलट सकती থাঁ। इधर उज्बेक मल्लाहो की सूझबूझ भी कामयाब हुई कि उन्होंने दोनों को एक साथ सलग्र कर दिया। इस तरह खतरा टल गया। काफ़िला सुबह किलिफ़ पहुँचा जहाँ बोखारी मुल्लाओं से उसकी भेंट हुई। दापहर को वहाँ से फिर रवाना होना पड़ा। गाते-बतियाते चलते हुए शाम हो गई। नदी के दक्षिणी किनारे पर राइफलें और भाले लिए प्रतिक्रातिकारी तुर्कमान दिखाई दिए। ख़तरा पैदा हो चुका था, मल्‍लाह आतकित से दिखाई दिए। नावें ज्योंही किनारे तक पहुँची, तुर्कमानी उनमें घुस आए। उन्होंने अनेक सवाल पूछे। काफ़िले को घेर लिया गया और उसे बधक बना लिया गया। आग जलाने से मना कर दिया गया। इसलिए सारी रात भय और भूख के साथ बितानी पड़ी। काफ़िले कि ही के एक तुर्की दोस्त ने उसे आगाह कर दिया कि वह मौत के चगुल 1 काफिले बालों को नावों से उतार कर कतार में खड़ा कर दिया गया। तलाशी ली गई और हरेक को कुदों और लात-घूसों से बड़ी बेरहमी से पीटा गया। पिटाई के बाद जाहिलों ने हुबम दिया-तिजी से दौड़ो!” और तब उनको खच्चरों




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