श्री भागवत दर्शन भागवती कथा भाग - 33 | Shri Bhagawat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 33
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
287
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका ` १५
काशी, काम्ी, अवन्तिका, पुरी और द्वारावती - ये सात रानियाँ
हैं । काशी इनके अत्यन्त निकट होने से इनकी प्रधान पटरानी
हैं । पिता आतपत्र अक्षयवट की छाया छोड़कर में माता की गोढ
में जा रहा था | पिता ने कहा “अपनी बड़ी माता से पूछ लो ॥
काशी गया, माँ ने अत्यन्त प्यार किया। और कहा---“बेटा !
अभी पिता के ी पास लौट जाओ |” रात्रि में में उसी मोटर
से लौट आया। आशा थी, ्तर्थी के दिन त्रिवेणी स्नानन
मिलेगा, किन्तु चतुर्थी को फिर मैंने अपने को त्रिबेणी जी में गोता
लगाते पाया | इस पर मुझे एक कदानी याद आ गयी ) कहानी
के बिना भूमिका पूरी कैसे हो ?
मथुरा जी के विश्राम घाट से नीचे और बंगाली घाट से ऊपर
एक घाट दै, जिम पर णक कदम्ब का वृत्त ह} उस घाट पर
चार चौथे आते और माँग थूटी छानकर इधर-उधर की वातं
करते थे । उनके पास एक मौका थौ वे कभी-कभी उस नौका में
बैठकर मी भाँग घोंटते थे। नौका एक रज्ज़ से कद्म्व के वृत्त में
यँधी रहती थी । एक दिन नोका में बैठकर भाँग घोंटते ही-बोंटने
एक चौबे ने कहा--“मैया ( हमारी तो इच्छा होती है कि प्रयाग
सज चलकर त्रिवेणी स्तान करे 1
दूसरे ने कहा--“हाँ, भाई, चलें तो सही, पर फैसे चलें ! रेल
में तो घड़ी भीड़ होती है; फिर उसमें भाँग-बूटी छानने का अवसर
भी नहीं मिलता 17
तीसरे कहा--“सबसे अच्छा तो यही है कि इस नौका से
ही चले चलें। एक थक जाय दूसरा खेचेगा; दूसरा थक जाय,
तीसरा खेवेगा । इच्छानुसार चाहे जहाँ खड़ी कर ली, माँग बूदी
छान ली; निबट आये, फिर चल दिये। मार्ग में बहुत से गांव
पड़ेंगे। दूध भांग लाये, रबड़ी बना ली | इससे भाँग की खुशकी
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