श्री भागवत दर्शन भागवती कथा भाग - 33 | Shri Bhagawat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 33

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Shri Bhagawat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 33 by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका ` १५ काशी, काम्ी, अवन्तिका, पुरी और द्वारावती - ये सात रानियाँ हैं । काशी इनके अत्यन्त निकट होने से इनकी प्रधान पटरानी हैं । पिता आतपत्र अक्षयवट की छाया छोड़कर में माता की गोढ में जा रहा था | पिता ने कहा “अपनी बड़ी माता से पूछ लो ॥ काशी गया, माँ ने अत्यन्त प्यार किया। और कहा---“बेटा ! अभी पिता के ी पास लौट जाओ |” रात्रि में में उसी मोटर से लौट आया। आशा थी, ्तर्थी के दिन त्रिवेणी स्नानन मिलेगा, किन्तु चतुर्थी को फिर मैंने अपने को त्रिबेणी जी में गोता लगाते पाया | इस पर मुझे एक कदानी याद आ गयी ) कहानी के बिना भूमिका पूरी कैसे हो ? मथुरा जी के विश्राम घाट से नीचे और बंगाली घाट से ऊपर एक घाट दै, जिम पर णक कदम्ब का वृत्त ह} उस घाट पर चार चौथे आते और माँग थूटी छानकर इधर-उधर की वातं करते थे । उनके पास एक मौका थौ वे कभी-कभी उस नौका में बैठकर मी भाँग घोंटते थे। नौका एक रज्ज़ से कद्म्व के वृत्त में यँधी रहती थी । एक दिन नोका में बैठकर भाँग घोंटते ही-बोंटने एक चौबे ने कहा--“मैया ( हमारी तो इच्छा होती है कि प्रयाग सज चलकर त्रिवेणी स्तान करे 1 दूसरे ने कहा--“हाँ, भाई, चलें तो सही, पर फैसे चलें ! रेल में तो घड़ी भीड़ होती है; फिर उसमें भाँग-बूटी छानने का अवसर भी नहीं मिलता 17 तीसरे कहा--“सबसे अच्छा तो यही है कि इस नौका से ही चले चलें। एक थक जाय दूसरा खेचेगा; दूसरा थक जाय, तीसरा खेवेगा । इच्छानुसार चाहे जहाँ खड़ी कर ली, माँग बूदी छान ली; निबट आये, फिर चल दिये। मार्ग में बहुत से गांव पड़ेंगे। दूध भांग लाये, रबड़ी बना ली | इससे भाँग की खुशकी




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