शिक्षण में मेरे प्रयोग | Shikshan Mein Mere Prayoga

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Shikshan Mein Mere Prayoga by योगेन्द्र कुमार रावल - Yogendra Kumar Rawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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में छात्रों से सहज भाव से चर्चा करें और बच्चों की प्रतिक्रिया जानकर मुझे जानकारी देवे। अध्यापकगण इसके बाद चले गये। मँ अपनी विचार प्रक्रिया मे तल्लीन हो गया। दि 21 मार्च को रविवार का अवकाश था। दि 22 को परेड में मैंने निम्नलिखित बात बताईं - 1 डॉक्टर और मास्टर का कार्यक्षेत्र बहुत कुछ एक जैसा है। बल्कि कई दृष्टिकोणों से मास्टर का कार्य डॉक्टर से भी ज्यादा कठिन है। इस तथ्य और तर्क को मैं बहुत ही बढिया तरीके से सटीक उदाहरण दे कर डॉक्टर-रोगी-दवाई--अस्पताल-इन्जेक्शन-सर्जरी इत्यादि शब्दों की तुलनात्मक व्याख्या शाला छात्र अध्यापक सजा य प्रयत्नो का प्रमाव इत्यादि शब्दों से स्पष्ट करता हुआ बच्चों के दिल-दिमाय पर ऐसी अमिट छाप डाल देता हूँ कि छात्रो की अनेक शकाओ तारिक उलञ्नो तथा मानसिक उपेक्षाओं का समाधान अच्छी तरह हो जाता है। उन सारी व्याख्याओ का विवरण यहाँ दे कर कलेवर बढाग निरर्थक होमा अत॒ इतना ही कहूगा कि आज दि 22 मार्च को इस प्रयोग में यह डॉक्टर और मास्टर का तर्क अपनी महत्वपूर्ण भूमिका प्रमाणित कर गया। 2 डॉक्टर के पास तरह-तरह के कई श्रेणियों के बीमार आते हैं-स्वस्थ होने के लिए। शाला और अध्यापक के पास कई श्रेणियों के छात्र आते हैं-- शिक्षित होने कं लिए सस्कारित होने के लिये (अज्ञानता अस्वस्थता है जिसका दूर होना स्वस्थता £) ईक्टिर अपने बीमार की बीमारी की स्थिति आयु जीवनीशक्ति आदि को ध्यान मे रख कर 'डोज' ओर अवधि तय करता है । जिस भरीज की जीवनी शक्ति प्रबल होती है उस पर डॉक्टर की दवा का असर बहुत जल्दी होता है। बहुतों का इलाज चलता ही रहता है। अभी हमारे इस सेवा अभियान में कई बच्चों पर तुरन्त असर आया है कई बच्चे अभी तक ज्यादा खुराक माँग रहे हैं। अब आप लोग स्वय ही तय करे कि आपकी बीमारी किस तरह की है और किस श्रेणी के बीमार हैं। दवा कब तक चलानी होगी ? अध्यापक तो तय कर ही रहा है किन्तु आपकी जीवनी शक्ति-इच्छा शक्ति को भी तो काम करो दीजिये। 3 मनुष्य के जीवन में सुख और दुख के उतार-चढाव आते ही रहते हैं। सुखी से सुखी धनी से धनी व्यक्ति के जीवन में भी दु ख किसी न किसी रूप मे मिलेगा। हर दु ख के क्षण मे मनुष्य कौ दूसरे मनुष्य की सेवा ओर उसके सहयोग की जरूरत पडती है । अत यदि हम अपने दु ख के क्षण में किसी के सेवा-सहयोग की आशा करते हैं तो हमें भी दूसरों की सेवा के लिये तैयार रहना चाहिये। 4. सेवा करने और सीखने की कोई खास उम्र या कोई खास स्वरूप मात्र नहीं होता। संवा शैशव काल से लेकर जीवन काल तक सम्भव हो सकती है क्योंकि सेवा का क्षेत्र और स्वरूप विशाल और विस्तृत होता है} 15




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