पंचसंग्रह | Panch Sangarah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
251
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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न पूर्व करणाः प्राप्ता ये ते भिन्नक्षणस्थितैः !
गुणस्थानमिदं यातेरपूवेकरणास्ततः ॥ ३६॥
क्षपयन्ति न ते कमे शमयन्ति न कंचन ।
केवलं मोहनीयस्य शमनक्षपणोदताः ।। ३७॥
ये संस्थानादिना भिन्नाः समानाः परिणामतः ।
समानसमयावस्थास्ते मबत्यनिवृत्तयः | २८ ॥
ग्रेनानिवृत्तयस्तुल्या भावास्तुल्यक्षणश्रिताम् ।
तेनानिवृत्तयो वाच्या वान्यवाचक्वेदिमिः ॥ ३९ ॥
क्षपयन्ति महामोहविद्धिषं शमयन्ति ते ।
विनिमलत भीतरः स्थूलकोपादि वृत्तयः ॥ ४० ॥
पूर्वापृत्राणि विद्यन्ते स्पधेकानि विशेषतः ।
संज्वालस्पानुभागस्य यानि तेम्यो व्यपेत्य यः ॥ ४१ ॥
अनन्तगुणहीनानुभागो लोमे व्यवस्थित: ।
अणीयसि यथाथोख्यः सक्ष्मलो म: स संमतः ॥ ४२ ॥
लोमसंज्वलनः ब्रक्ष्मः शर्म यत्र प्रप्ते ।
क्षयं चा सयतः दृह्मः संपरायः स कथ्यते ॥ ४३॥
कोसुमोऽन्तम॑तो रागो यथावस्नेऽवतिषते ।
घरक्ष्मलोमगुणे लोभः शोध्यमानस्तथा तनुः ॥ ४४ ॥
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