न्यायप्रदीप | Nyayapradeep

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Nyayapradeep by दरबारीलाल न्यायतीर्थ - Darabarilal Nyayatirth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम अध्याय । ७ इसी तरद गायका उक्षण सींग, मनुष्यका रक्षण पेचेन्द्रियलल आदिः भी अतिन्यापि छक्षणामासके उदाहरण सम्नना चाहिय । अव्याप्त रक्षणामास तो रक्षयके भीतर ठी रहता दै भर अति- व्याप्त लक्षणाभास भीतर और वाहर-दोनों जगह-रहता है | लक्षणरूपमें कहेगये धमेका, लक्ष्यमें बिलकुल न रहना । असम्भव दोप है । जैसे गपेका रक्षण सीग । सीग किती मी गेम नहीं होता, इसलिये यहां असम्भव दोष है और यह दोषवाला क्षण, भसम्भनि छक्षणाभास कहता है । हसीतरह जीवका ठक्षण अचेतनत् और पुद्ठल (प्रथ्वी आदि) का रक्षण चेतनत्व आदि भी असम्भवि छक्षणामास दै । , कुछ उक्षणामास ऐसे भी होते हैं, जिनमें भव्याप्ति और अति- व्याप्ति-दोनों-ही दोष पाये जाते हैं | जैसे-विद्ान उसे कहते हैं जो अंग्रेजी अथवा संस्कृत जानता हो। परन्तु बहुतसे विद्वान ऐसे हैं जो अंग्रेजी और संस्कृत दोनों नहीं जानते फिर भी वे विद्वान्‌ हैं; इसलिये अब्याप्ति दोप है। तथा बहुतसे मूख भी संगति आदिसे या मातृभाषा होनेसे अंग्रेजी या संस्कृत वोलने छ्गते है लेकिन वे विद्वान नहीं होते, इसलिये यहां अतिव्याष्ति दोष भी है । प्राचीन प्रन्थ- कारोंने ऐसे मिश्रव्क्षणामासोंका अल्ग उल्लेख नहीं किया है | क्योकि क्षणामासके द्वारा ठक्षणके दोष ही कह्दे जाते हैं । हेत्वा- भासम भी एक जगह अनेक दोष होते हैं, परन्तु मिश्रहेत्वा- भासोंका नाम अछ्ग नहीं खखाजाता; क्योंकि इससे व्य्ैका विस्तार होता है । यही वात छक्षणामासके विषयमें भी समझना चाहिये । इसीलिये रक्षणाभासके तीन ही भेद किये गये हैं ।




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