श्री जिनेश्वर भगवान द्वारा प्ररूपित मोक्ष मार्ग | Shri Jineswar Bhagawan Ki Praroopit Moksha Marg
श्रेणी : शिक्षा / Education
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
532
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११
रीति नही है। तुम्हे सोच समझ कर कार्यं करना चाहिए ।* श्रौ विनोदमुनिजी का एक ही उत्तर था-^मेने
यह् काम बहुत सोच समन्ञकर किया हं । श्रव इममे परिवत्तंन नही हो सकता।” वे अरडिगि रहै । राजकोट
से श्रीमान् रावबहादुर एम पौ शाह, श्रौ केशवलाल माई पारेव श्रौर पड़त पूणचन्द्रजी दक खीचन
पहुँचे । उन्होने श्रौ विनोदमृनिजी को डिगाने की चेष्टा कौ, किन्तु वे तो प्रपते आप दृढ़ निश्चयी थे।
वे क्या डिगते । उन्होने शिष्ट मण्डल से कहा कि-“आप भी भ्रव सतार कौ मोहमाया को छोडकर
इस मार्ग पर भ्रा जाइए और मेरे माता पिता को भी ले आइए ।” शझिष्टमण्डल, उस द्रव्य भाव सयमी
लधुमुनि के चरणों में अपनी भक्ति श्रपित कर वापिस लौट आया । उसने सारा हाल माता पिता को
सुनाया । माता, दर्शन करने को बेचेन । वह तो पहले से ही अपने लाडले को देखने के लिए छटपट्ां
रही थो, किन्तु पिता के मोह ने फिर भी घोखा दिया । पिता कहते थे-'“ोडे दिन विनोद को मारवाड
को हवा खा लेने दो ओर सयम के परीषह सह लेने दो । उसका भावावेश उतर जायगा | फिर हम
चलेगे, तव उसका समभना सरल हो जायगा' । उनकी धारणा गलत निकली । -
श्री विनोदमुनिजी की दीक्षा के कुछ হিল নান श्री फुसालालजी की दीक्षा के प्रसग पर में
खीचन गया था, तब श्री विनोदमुनिजी के दर्शन किये थ । उनसे मेरी बातचीत हुई थौ । उन्होने श्रपने
प्रस्थान और दीक्षा भ्रादि की सारी हकीकत मुझे थुनाई थो | वे प्रसन्न थे और दशवेकालिक का श्रागे
ग्रभ्यास ढढा रहे थे । -
तपम्वौ श्री लालचन्दजी म ने चातुर्मास फलोदी में किया था | वे अपने सतो के साथ खीचन
स फलोदौ पधार गये ये । श्री विनोदमृनि का ज्ञानाभ्यास फलोदी में चल ही रहा था कि आयुष्य पूर्ण
होने का समय उपस्थित हौ गया । दिनाक ७ श्रगस्त ५७ की जाम को एकाकी स्थण्डिल भूमि से लोटते
हुए उन्होंने देखा कि रेलगाडो आ रही है श्रौर लाइन पर गायें खडी हूँ । गायें दिग्मूह बन गई या क्या,
जो हटती ही नही है । यदि वे नहीं हटो, तो कुचल कर मर जायगी । मूनिजी उन्हे बचाने के लिए
श्रागे बढे । गायो का हटाकर वचालिया, किन्तु खुद नही बच सके । उन्हे अ्रपना तो ध्याव ही नही था।
इजिन की टक्कर लगी ओर गिर गये । प्राणहारक्र झ्रघात लगा । शरीर से रक्त का प्रवाह वह चला
और कुछ देर में ही प्राणात हो गया । फन्नोद्री श्ौर खीचन मे (जो फलोदी से तीन माइल दूर है)
हाहाकार मच गया । इस प्रकार इस पवित्र आत्मा का, दो सवा दो महीने की चारित्र पर्याय के बाद
ही झायुष्य पूरा हो गया । ४
“अपंखय जीविय मा पमायए''वाव्रय-जो सदव उनक्ता लक्ष्य वना हृभ्रा ঘা, শী অলালা
कि वे शीघ्र हौ सवत्यागी बनना चाहते ये सभवहंश्रदृष्टको प्रेरणा उन्हें हो गई हो और
इसलिए उन्होने विलम्ब करना उचित नही समकर तत्काल दीक्षित होने का निरचय कर लियाहो।
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