देखा परखा | Dekhaa Parakhaa

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : देखा परखा  - Dekhaa Parakhaa

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about इलाचन्द्र जोशी - Elachandra Joshi

Add Infomation AboutElachandra Joshi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१६ देखा-परखा विकास नहीं हो पाता तब तक हमें रेडियो नाटकों से ही सन्‍्तोष कर लेना होगा । और, जसा कि में पहले ही बता चुका हूँ, इस दिशा मं हिन्दी-नाट्य ने काफी प्रगति कर ली है । आ्रालोचना के क्षेत्र में ग्राज का हिन्दी साहित्य बहुत पिछड़ा हुआा है। न तो श्राज साहित्य के नित्य बदलते हुए रूपों का समुचित मूल्यांकन हो पा रहा है और न पिछले साहित्य का सिहावलोकन ही ईमानदारी से हो रहा है। हमारे आलोचक स्कूलों और कालेजों में पढ़ाने वाले और छात्रों को परीक्षाओं से सम्बन्धित नोट लिखाने वाले साधारण अध्या- पकों की सीमित दृष्टि से श्रागे बढ़ सकने में भ्रसमर्थ सिद्ध हो रहे हैं । ग्राज आलोचक का दायित्व कितना बढ़ गया है, इस तथ्य पर वे गहराई से विचार करना ही नहीं गाहते । श्रालोचक का कर्तव्य केवल विविध साहित्य-धाराशञ्रों की प्रगति या विक्ृृति का इतिहास बना देना भर नहीं है; श्रौर विविध साहित्यिक धाराश्रों श्रथवा कुछ विशिष्ट रचनाओं पर मनमाना फतवा दे देने से ही श्रालोचना का उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता । किसी महत्वपूर्ण साहित्यिक श्रालोचना के भीतर वही सजंनात्मक प्रेरणा निहित होनी चाहिए जैसे किसी महत्वपूर्ण साहित्यिक कृति में । सच्चा प्रालोचक भी कवि या कलाकार की तरह द्रष्टा होता है। जब तक उसमें प्ररणात्मक हृष्टि या 'व्हिजन' नहीं होता तब तक उसकी महत्ता प्रमारित नहीं हो सकती । खेद के साथ कहना पड़ता है कि हिन्दो में श्राज आलोचक द्रष्ठाओ्ं का नितांत अभाव है। यही कारण है कि आज हम आलोचना के क्षेत्र में न तो गहराई पाते हैं न ईमानदारी । ऐसी अ्राजकता छाई हुई है कि विभिन्न साहित्यिक धाराश्रों पर सहज श्रौर सुस्पष्ट प्रकाश पड़ने के बजाय विभिन्न भ्रालोचकों कौ कुण्ठित वैयक्तिक रुचिर्यां एक दूसरेसे टकराती और भिड़ती हुई पायी जाती हैं । इस संकीरंता और रुचि-विक्षति के कई कारणों में से एक यह है कि हमारा आलोचक-समाज, हमारे नये कवियों तथा कलाकारों की तरह,




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now