मौलाना हाली और उनका काव्य | Maulaanaa Haalii Aur Unakaa Kaavy

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : मौलाना हाली और उनका काव्य - Maulaanaa Haalii Aur Unakaa Kaavy

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ज्वालादत्त शर्मा - Jwaladutt Sharma

Add Infomation AboutJwaladutt Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
उद्ाय में हाली ने ही सबोध स्थान प्राप्त किया। गुरु को शनिकता ने उन्हीं के अन्दर विकास पाया। हालो ने भी गुरु गालिब को गुरु-दक्षिणां में बहुत बड़ी रकम दो। वह इकम सोने-चाँदी के कुकड़ों में नहीं, उनके लिखे गालिब के जीवन-चरित “यादगारे ग्ालिब”” के रूप में अदा की गई। हाली ने गुरु का जीवन-चरित बड़ी ही श्रद्धा किन्तु माम्मिकता से लिखा है। उसे लिखकर उन्होंने: उदू -साहित्य-भाण्डांर में एक बहुत बढ़िया जीवन-चरित की सृष्टि की है। उसे पढ़- कर मालूम होता है कि एक शिष्य अपने काव्य-गुरु का जीवन- चरित कितने बढ़िया ढड़ से लिख सकता है। उसके प्रत्येक भ्रध्याय में मौलाना ने अपनी अदभुत लेखन-शक्ति का परिचय दिया है। गालिब श्रीर हाली का मणि-काच्वन संखाग था गाल़िब की मृत्यु पर आपने एक शोक-कविता लिखी थी | उसके कुछ शर सुनिए-- बुलबुले हिन्द मर गया हेहात। जिसकी थी बात बात में इक बात। १॥ नुक्ता दा नुक्ता संज नुक्ता शनास। पाकदिल पाकज्ञत पाक सिफात ॥ २॥ छाख मज़मून और उसका एक ठठोल । सी तकल्लुक और उसकी सीधी बात ॥ ३ ॥ एक रोशन दिमाग था न रहा। शहर में हक चिराग था न रहा।४॥ नकृ देमानी का रोदा न रहा खाने मजमं का मेवा न रहा॥२॥




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now