मौलाना हाली और उनका काव्य | Maulaanaa Haalii Aur Unakaa Kaavy

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Maulaanaa Haalii Aur Unakaa Kaavy by ज्वालादत्त शर्मा - Jwaladutt Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उद्ाय में हाली ने ही सबोध स्थान प्राप्त किया। गुरु को शनिकता ने उन्हीं के अन्दर विकास पाया। हालो ने भी गुरु गालिब को गुरु-दक्षिणां में बहुत बड़ी रकम दो। वह इकम सोने-चाँदी के कुकड़ों में नहीं, उनके लिखे गालिब के जीवन-चरित “यादगारे ग्ालिब”” के रूप में अदा की गई। हाली ने गुरु का जीवन-चरित बड़ी ही श्रद्धा किन्तु माम्मिकता से लिखा है। उसे लिखकर उन्होंने: उदू -साहित्य-भाण्डांर में एक बहुत बढ़िया जीवन-चरित की सृष्टि की है। उसे पढ़- कर मालूम होता है कि एक शिष्य अपने काव्य-गुरु का जीवन- चरित कितने बढ़िया ढड़ से लिख सकता है। उसके प्रत्येक भ्रध्याय में मौलाना ने अपनी अदभुत लेखन-शक्ति का परिचय दिया है। गालिब श्रीर हाली का मणि-काच्वन संखाग था गाल़िब की मृत्यु पर आपने एक शोक-कविता लिखी थी | उसके कुछ शर सुनिए-- बुलबुले हिन्द मर गया हेहात। जिसकी थी बात बात में इक बात। १॥ नुक्ता दा नुक्ता संज नुक्ता शनास। पाकदिल पाकज्ञत पाक सिफात ॥ २॥ छाख मज़मून और उसका एक ठठोल । सी तकल्लुक और उसकी सीधी बात ॥ ३ ॥ एक रोशन दिमाग था न रहा। शहर में हक चिराग था न रहा।४॥ नकृ देमानी का रोदा न रहा खाने मजमं का मेवा न रहा॥२॥




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