पत्रकारिता के प्रश्न | Patrakarita Ke Prashan

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Patrakarita Ke Prashan by राजेन्द्र शंकर भट्ट - Rajendra Shankar Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समाचारपत्रों में सत्य से साक्षात्‌ विश्वसनीयता के विकल्प के रूप मे, वास्तव में तो इसके समर्थन ओर व्यावहारिक रूप मे, विविधता को ही प्रस्तुत किया जा सकता है । विश्वसनीयता का प्रश्न हमारी इस परम्परा से प्रारम्भ होता है कि जो कुछ कहा जाता है, वह सत्य होता है और उससे भी ज्यादा सत्य वह हो जाता है जो लिखकर दिया जाता है। इस आधार पर अविश्वसनीय अतीत में ही नहीं, आजकल के समय में भी इतना व्यवहार और व्यापार हो रहा है कि कहे और लिखे हुए का अनादर बहुत बार समझ में नहीं आता। स्थिति तो यह है कि बहुत-से सौदे अब भी कपड़े में छिपी अँगुलियों के इशारों पर हो लेते हैं, हजारों-लाखों के वारे-म्यारे के। ऐसे लोग कैसे मान सकते हैं कि जो बड़े-बड़े नाम हैं लिखे-पढ़े लोगों में, उनकी और से छपी बातें सत्य के सिवा कुछ और हो सकती हैं। अब भी लिखे-छपे का इतना आदर है कि दैनिक समाचारपत्र और अवधिकालीन पत्रिकाएँ इसी के आधार पर बिकती हैं। अगर ऐसा नहों हो तों अखबारों का खरीदा जाना बहुत कम हो जाए। वास्तविकता भी यह है कि हर एक समाचारफ्त्र के हर एक अंक में ऐसी सामग्री सचमुच कम छपती है, जिसे प्रकाशन के पूर्व सत्य नहीं माना जाता। समाचारों कौ प्राप्ति ओौर प्रकाशन की जो विधि है, उसमें इससे अधिक कुछ नहीं क्रिया जा सकता कि उतना ही प्रकाशित किया जाए, जिसे प्रकाशन के समय सत्य समझा जाता है। इसमें भी अल्पता अथवा आशंका हो जाती है, तभी विश्वसनीयता की समस्या सामने आती है। “चाहे समाचार पहुँचाने के साधन स्माच्ारपत्र हों अथवा रेडियो या टेलीविजन, उन्हें ज्लोत के रूप में अपने संगठन के बाहर काम करने वालों पर निर्भर रहना पड़ता है। कल्पना करे उस समाचार सम्पादक कौ, जिसे एक कमरे मेँ बैठकर, कु घप्टों में ही संसार के हर कोने से, निकट से भी और बहुत ही दूर से भी, अपने संवाददाताओं से, मान्य संवाद समितियीं से, कम परिचित संवाददाताओं से, सर्वधा अपरिचित सूत्रों से, प्राप्त समाचारो के अपार समूह में से चुनकर अगले प्रातःकाल के लिए अपने अखबार के समाचार-पृष्ठ तैयार करने पड़ते हैं। वह जेबस होता है, समय के आगे, सामग्री के आगे, और समाचारों की ग्रामाणिकता परखने के जो जाने-माने सिद्धान्त हैं, जैसे अपरिचित सूत्रों से प्राप्त संदिग्ध और विवादास्पद समाचार नहीं प्रकाशित किया जाए, उनके सिवा वह विश्वसनीयता प्राप्ति के लिए कुछ और कर नहीं सकता। उसको हर एक कोशिश के बाद भी ऐसे समाचार छप जाते हैं, छप सकते हैं, जो सत्य नहीं हों। परन्तु का विवाद ऐसी चूक अथ्वा धोखे को लेकर नहीं उठाया जाता विवाद और शका ऐसे समाचारों को लेकर उठती है जो जान बुझकर चाहे पूरे




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