मुग़ल बादशाहों की हिंदी | Mugal Baadashaahon Kii Hindii

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Mugal Baadashaahon Kii Hindii by चन्द्रबली पांडे - Chandrabali Panday

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) किसी तुर्की का शब्द नदीं । वह सचमुच हिंदी भाषा का शब्द है । बाबर ने हिंदी भाषा के लिये क्‍या कुछ किया, इसका ठीक ठीक पता नदीं । अपनी जन्म-भाषा तुकीं पर उसकी जो ममता थी वह भी हमारे काम की नहीं । हमें तो यह बताना है कि बाबर सरा और उसकी गद्दी उसके प्राणप्रिय पुत्र हुमायेँ को मिली । हुमायें जेसे उदार शासक के लिये जमकर शासन करना कुछ खिलवाड़ न था कि अपने आप तो पोथियों में पड़ा रहता और भले भाई शासन की बागडोर चुपचाप उसी के हाथ में पड़ी रहने देते और अपने मनसूबे को कुछ हराभरा न करते । साथ ही पठानों का रक्त भी इतना ठंढा नहीं हो गया था कि कभी बादशाहत के लिये उसमें जोश ही नहीं आता | अतः फल यह्‌ हुआ कि प्यारे भाइयों ने विद्रोह किया और पठान शेरशाह ने समय पाकर उसे हिंद के बाहर शखदेड़ दिया | हुमायें सचेत हुआ, पुनः चढ़ आया ओर फिर हिंदुस्तान का बादशाह बना। पर राज्य का सुख भोगने के लिये अधिक दिन तक जीवित न रह सका । उसका राज्यसुख झलक दिखाकर लुप्त हो गया । इस आँखमिचौनी के शासन में कुछ ठिकाने से हो पाता तो आज हुमायूँ के न जाने कितने हिंदी के पंथ होते | पर दुभोग्यवश उसका कोई पद्य हमारे सामने नहीं है । हुमाय्‌ं के दरबारी कवियों मँ कुछ पेसे भी फारसी के कति थे जो हिंदी में रचना करते थे और हिंदी-गीतों को बड़े प्रेम से अपने प्रभु के सामने गाते थे । उनमें शेख अब्दुछ वाहिब बिल- आमी और शेख गदाई देहलवी मुख्य थे | किंतु खेद है कि




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