प्रेमचन्द | Premchand

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Premchand  by हंसराज रहबर - Hansraj Rahabar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रेम चन्द _विचारशील पिताके ठोकर ख।ने से यह दूसरा ब्याह अ्रभीष्ट था । इस समय उनकी अवस्था चालीस से ऊपर थी । स्मृति का पुजारी कहानीमे लिखा ह-- “महाशय होरीलाल की पत्नी का जब से देहान्त हुआ वह एक तरह से दनियाँ से विरक्त होगये थे 1 ˆ“ ` * और तब्र महाशय जी का पेंताल्ीसर्वा साल था. सगठित शरीर था, स्वास्थ्य अच्छा, रूपवान्‌ , विनोदशील ओर सम्पन्त । चाहते तौ तुरन्त दूसरा व्याह कर लेते ।' महाशय होरीलाल को प्रेमचन्द के पिता काप्रतिरूप नहीं कहा जा सकता; लेकिन व्याह के समयमृशी भ्रजायवलाल को उस्न का प्रंदाज्‌ लगाया जा सकताहै। मशी होरीलालने दूसरा व्याह नहीं किया, इसलिये वे प्रेमचन्द की श्रद्धा और सम्मान के पात्र हैं। उन्हें इस कहानी में आदर्श व्यक्ति के तौर पर पेश किया गया है। एसे व्यक्ति को दूल्हा बनाकर बरात चढ़ने का ये चित्र, मूल कहानी में इस प्रकार खींचा है :--- (“चौबेजी की सजधज आज देखने योग्य हे । तनजेब का रंगीन कुरता, कतरी और संचारी हुईं म्‌'छे, खिज़ाब से चमकते हुए बाल, सता हुआ चेहरा, चढ़ी हुईं आंखं--योवन का पूरा स्वांग था।” दरिद्रता, विमाता का निटुरव्यवहार, पिताकी श्रवहेलना और उदासीनता; यह वातावरण था जिसमें प्रेमचन्द्र का बचपन बीता । फिर भी उन्होंने घर की घृटन से मत को कुंठित नहीं होने दिया। बाहर के खुले और स्वस्थ वायुमंडल में घर के अभाव की पूर्ति दूृढ ली थी। माता-पिता की भर्त्सेना से व्यथित हृदय को पेड़ों की ठंडी छाया में सांत्वना मिलती थी। “घर-जमाई' कहानी में लिखा है “४ हरिघधन को अपना बचपन याद आया, जब वह भी इसी तरद्द क्रोडा करता था । उसकी बाल स्मृतियां उन्द्ीीं चमकीले तारों की भाँति प्रज्वलित होगईं | वह अपना छोटा-सा घर, वह आम का बाग, जहाँ वह केरियां चुना करता था, वह मेंदान जहाँ वद् कत्रड्डी खेला करता था, অহ আলী उसे याद आने लगा । फिर अपनी स्नेदमयी साता को सदय-मूर्ति सामने खड़ी होगई ।” बचपन के इस, घर और बाग की याद उन्हें श्रकतर आती थी । चोरी कहानी मे लिखते हं :-- “हाय बचपन ! तेरो याद नहीं भूकती। वह कचा टूटा-घर, वह पुवाल का बिछोना, वह नंगे बदन, नंगे पांव खेतों में घूमना; आम के पेड़ों पर चढ़ना -सारी बातआंखों के सामने फिर रही हें।”




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