मोक्षमार्ग - प्रकाशक | Mokshamarg - Prakashak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
453
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ रहस्यपुरं জিতৃভী
बहुरि प्रशन--जो अनुभव तो निविकल्प है, तहां ऊपर के और
तीचे के गुणस्थाननि में भेद कहा ?
ताका उत्तर--परिणामन की मग्नता विषें विशेष है। जैसे दोय
पुरुष नाम ले हैं अर दो ही का परिणाम नाम विखे है, तहां एक के
तो भग्नता विक्षेष है अर एक कं स्तोक है तैसे जानना ।
बहुरि प्ररन--जो निविकल्प अनुभवविषे कोई विकल्प नाहीं तो
शुक्लध्यान का प्रथम भेद पृथक्त्ववितकंवोचार कहा, तहा पृथक्त्व
वितकंवीचार--नाना प्रकारका श्रृत अर वोचार--अ्े, व्यं जन, योग,
सक्रमन रूप ऐसे क्यों कहा ?
तिसका उत्तर--कथन दोय प्रकार है। एक स्थूल रूप है, एक
सुक्ष्म रूप है । जपे स्थूलता करि तो छठे हौ गुणस्थाने सम्पूणं ब्रह्मचयं
व्रत कहा अर सूक्ष्मता कर नवमे गुणस्थान ताईं मेथून संज्ञा कही तैसे
यहां स्वानुभवविषें निविकलता स्थूल रूप कहिए है । बहुरि सूक्ष्मता
करि पृथकूत्ववितकं वीचारादिक भेद व। कंषायादि दश्चमा गुणस्थान
ताईं कहे हैं। सो अब आपके जानने में वा अन्य के जानने में आवे
ऐसा भाव का कथन स्थूल जानना जर जो भप भो न जाने अर
केवली भगवान् ही जाने सोरेसे भाव का कथन सूक्ष्म जानना।
चरणानुयोगदिकविषे स्थूल कथन की मुख्यता है अर करणानुयोगा-
दिक विष सूक्ष्म कथन को मुख्यतादहै, एसा मेद ओर भी ठिकाने
जानना । से निविकल्प अनुभव क! स्वरूप जानना ।
बहुरि भाई जी, तुम तीन दृष्टांत लिखे वा दृष्टांत विषें प्रश्न
लिखा सो दुष्दांत सर्वाज़ मिलता नाहीं । दृष्टांत है सो एक प्रयोजन-
कों दिखावे है सो यहां द्वितोया का विधु (चन्द्रमा), वलविन्दु, अग्नि-
कण ए तो एक देश हैं अर पूर्ण माशो का चन्द्र, महासागर तथा अग्नि-
कुण्ड ये प्रवंदेश हैं। तंसे हो चोथे गुणस्थानवर्ती आत्माके ज्ञानादि
गुण एक देश प्रगट भये हैं तिनकी अर तेरहवें गुणस्थानवर्ती आत्मा के
ज्ञानादिक गुण सर्व प्रगट होय हैं तिनकी जाति है ।
तहां प्ररन-जो एक जाति है तो जसे केवलो सवं ज्ञेयकों
प्रत्यक्ष जाने हँ तसे चौथे गुणस्थान वाला भी आत्माकों प्रत्यक्ष
जानता होगा ?
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