सुग्रकृतांग सूत्र भाग - 1, 2 | Sutrakrtanga Sutra Part - 1, 2
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
46 MB
कुल पष्ठ :
824
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १७ )
आगम पाठो से मिलते-जुलते अनेक पाठ, शब्द बौद्ध ग्रन्थों में भी मिलते है, जिनकी तुलना मनेक दृष्टियों से
महत्त्वपुणे हँ, पाद-टिप्पण में स्थान-स्थान पर बौद्ध ग्रन्थों के वे स्थल देकर पाठकों को तुलनात्मक अध्ययन के लिए इंगित
किया गया है, भ्राशा है इससे प्रबुद्ध पाठक लाभान्वित होगे । अन्तमं परिशिष्ट है, जिनमें गाथाओं की अकारादि
सूची तथा विशिष्ट शब्दसूची भी है । इनके सहारे भ्रागम गाथाव पाठो का श्रनुसंधान करना बहुत सरल हो जाता
है। अनुसंघाताओं के लिए इस प्रकार की सूची बहुत उपयोगी होती है। पं. श्री विजयमुनिजी शास्त्री ने विद्रत्तापुणे
भूमिका में भारतीय दर्शनों की पृष्ठभूमि पर सुन्दर प्रकाश डालकर पाठकों को श्रनुगृहीत किया है।
इस संपादन में युवाचायं श्री मधुकरजी महाराज का विद्रत्तापूणे मागं -दशेन बहुत वड़ा सम्बल बना है। साथ
हो विश्रुत विद्वान् परम सीहादंशील पंडित श्री शोभाचन्द्रजी भारिल्ल का गंभीर-निरीक्षण-परीक्षण, ष. श्री नेमी-
चन्द्रजी महाराज का श्रात्मीय भावपू्णं सहयोग मुकं कृतकायं मे बहुत उपकारक रहा है, म विनय एवं छतज्ञता
के साथ उन सबका आभार मानता हं मौर आशा करता हूं श्रृत-सेवा के इस महान कायं मं भविष्य में इसी प्रकार
का सौभाग्य मिलता रहेगा ।
--श्रीचन्द सुराना
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