छहढाला | Chhahdhaala
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
महान भक्ति कवि पं दौलत राम का जन्म तत्कालीन जयपुर राज्य के वासवा शहर में हुआ था। कासलीवाल गोत्र के वे खंडेलवाल जैन थे। उनका जन्म का नाम बेगराज था। उनके पिता आनंदराम जयपुर के शासक की एक वरिष्ठ सेवा में थे और उनके निर्देशों के तहत जोधपुर के महाराजा अभय सिंह के साथ दिल्ली में रहते थे। उन्होंने 1735 में समाप्त कर दिया था जबकि पं। दौलत राम 43 वर्ष के थे। अपने पिता के बाद, उनके बड़े भाई निर्भय राम महाराजा अभय सिंह के साथ दिल्ली में रहते थे। उनके दूसरे भाई बख्तावर लाई का कोई विवरण उपलब्ध नहीं है।
पंडितजी के प्रारंभिक जीवन और शिक्षा के स्थान के बारे में कोई विवरण उपलब्ध नहीं है। दौलत राम। चूंकि उनके प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्ट ও
--~~~~--~--~ ~~~
~~~ --~--~----~ ~ ------ „~= ~~~ -- ~
च्रस की दुर्लभता और उसके दुःख
दुर्लभ लहि ज्यो चिन्तामणी, त्यो पर्याय लही त्रसतणी।
लट पिपीलि अलि आदि शरीर, घरि-घरि सरयो सही बहुपीर ॥ ५॥
16% ५४ টি स
र< पिन्तामगि श्रा पययि
दु्भ--कदिन, मुदिकत्त । चिन्तामणी--वर् रप्र लिससे मन की चिन्तित वस्तु
गत होतो है. पर्याय--शरीर या गति, चस--दो इन्द्रिय से पच्तेन्द्रिय तक के णीव,
परपेपीकछ्ति-चिउटो,अखि--भौरा, घरि-धरि-वारम्वार धारण कंरके,पौर--दुःख।
अर्थ--जसे चिन्तामणि-रत्त वडी कठिनता से प्राप्त होता है, उसी
प्रकार ग्थावर सटे अख पाए पर्याग হা दुर्लेध हे ५ ऋख-पएर्याय
पाकर भी जव जीव ने (छिडन्दिय) खट, ( निद्न्ठ्रिय ) चिंउछी,
(यीडन्द्रिय) भीरा आदि विकलतन्नय शरीर को वारम्थार धारण
किया और मरण को प्राप्त हुआ, तो उसे घहा भी दुष्य ही
सदना पटु । सस प्रकार टस जीच ने चहत दुख सदन किया 1
भाषार्थ--जिस प्रकार चिन्तापणि रत्न, जिससे मन की सभी इच्छित वस्तुं सुतम
हौ जातौ ई, प्राप करना अत्यन्त कठिन है, एसी प्रकार स्थावर् जीव
का सपने से उन्न योनि (त्रस् योनि ) प्राप्त करना कठिन है ! यदि जीव
प्रयज्ञ कर त्रस योनि में पहुँच भी जाता है तब मो एसे शान्ति नही मिलती,
दुःखमय ससार में वह दु'ख से दर नही माग सकता । त्रसं पर्याय पाने पर
भी वह बार-बार ट्रिइन्द्रिय जेसे तट, त्रिइन्द्रिय जेसे चीटी, चौइन्द्रिय
जसे भौरा जादि विकततन्रय शरीर धारश करता है, इन पर्थायों मे भी
जीव दु स॒ ही पाता है, क्योंकि ससार हो दुन्समय है ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...