भारतवर्ष का इतिहास | Bharatvarsh Ka Itihas
श्रेणी : इतिहास / History, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
68.8 MB
कुल पष्ठ :
374
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ध . भारतंवष का इतिशास
नास्यवेद का व्याख्याकार झाचाये अझभिनवगुप्त लिखता है कि महाभारत शास्त्र में
_ शतसइस्र स्ठोक थे 1?
रे. सब् £२० के समीप माघप्रणीत शिशुपालवध महाकाव्य पर टीका लिखने
वाला बल्लभदेव मद्दाभारत का श्लोक परिमाण सपादलक्ष--१९४,००० मानता है 13
४. सन् 8०० के समीप का राजशेखर अपनी काव्य-मीमांसा में भारतसंहिता
को शतसाइस्री कहता है ।*
४. सन् ६३० के समीप वलभीविनिवासी ऋग्वेद भाष्यकार श्याचार्ये स्कन्द
स्वामी अपने भाष्य में भारतान्तगंत अनेक श्ञाख्यानों की छोर संकेत करता है ।*
_ हूँ. स्थाणवीश्वर-महाराज थी हषेबधन की राजसभा को सुशोभित करने वाले
गद्यकवि भट्ट बाण ने काइदम्बरी छोर हषेचरित दो प्रन्थ-रत्न लिखे थे। ये दोनों
ग्रन्थ-महदाभारतान्तरगंत अनेक सरस कथाओं श्र घटनाओं से भरे पढ़े हैं ।*
१. द्रेपायनेन सुनिन! यदिदं ब्यघायि शा सहस्शतसम्मितमत्र मोक्ष: ।
भगवद्वीता-भाष्य, भूमिका लोक २ ।
२, च्लभदेव का पुत्र चन्द्रादित्य और पौत्र कय्यट था । कथय्यट ने देवीशतक की
' विधति में अपना काठ कछि संबत् ४०७८ अर्थात् सब ९७६ लिखा है ।
_..... दे, सपादलक्षं श्रीमहाभारतसू। २ । ३८ ॥ इसमें हरिवंश का पाठ भी सम्मिलित होगा ।
है, पू० ७ य
७, भारते तु ऋषयः शापात्सरस्वती मोचयामासुरित्याख्यानम्
ऋगवेद्भाष्य 1१19१ २।९॥ तुलना करो सहा० शब्यपत्रे, अ०् ४४ ।
ं ६, पाथरथपताकेव वानराक्रान्ता, ० ९७। विराटनगरीव कीचकशताबूता, ए० ६७ ।
भीष्ममिव शिखण्डिशन्रुसू , प्० १०७ ।. पराशरमिव योजनगन्धाजुसारिणस, पू० १०७, १०८ ।
:. महाभारते शकुनि-वधा, प्ृ० १४३ | सदामारत-पुराण-रामायणानुरागिणा, प्० १७९ | भास्ती-
_ कतनुरिंव आानन्दितसुजज्ञलोकाः, प्र० १८२ । महाभारते दुग्शासनापराघाक्णनम्, पृ० १९९ |
. 'महामारत-पुराणेतिहासरामायणेषु, प्र० २६३ । महाभारतमिवानन्तगीताकर्णनानन्दितनरम्;
....इ० दे१४ |. इत्यादि, कादस्बरी, पचभाग, हरिदासकृत कलिकत्ता संस्करण, शक, १८५७. |.
-. . विविधवीररसरामणीयकेन महा भारतमपि ठंघयन, पष्ठ उच्छास, प्र० ९३९ | पाण्डवः
..... सब्यंशाची 'वीनविषयमतिक्रम्य राजसूयसम्पदे क्ुध्यद्-गन्धवंघनुष्को टिडाझ्ारकूजितकुजं हेम-
.... कूटपबत पराजष्ट; सप्तम उच्छास प०. ७५८. हपषचरित. जीवानन्द संस्करण कॉलकातां; -
सब १९१८।
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